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२४. भाषण : लोहागंजमें[१]

८ मई, १९२५

श्री गांधीने अभिनन्दन-पत्र तथा थैली स्वीकार करते हुए एक छोटा-सा भाषण दिया और कहा कि मुझे दुःख है कि मैं अली भाइयों को अपने साथ नहीं ला सका, वे अपने कार्यमें व्यस्त थे। यदि आप लोगोंको स्वराज्य चाहिए तो आपको अपना निश्चय पक्का कर लेना होगा। इसीलिए कांग्रेसने घोषणा की है कि स्वराज्य प्रेम और अहिंसा के जरिये ही प्राप्त करना है और उसने बार-बार लोगों से कहा है कि सभी लोगोंको, चाहे वे किसी भी धर्मके हों, इस कार्यमें मन लगाकर जुट जाना चाहिए। साथ ही, उसने अस्पृश्यताको मिटानेके लिए कहा है। आपका धर्म आपसे कहता है कि आप किसीसे भी घृणा न करें। में आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप प्रतिदिन कमसे कम आधा घंटा सूत कातें और हाथका बुना खद्दर पहनें। मुझे यह कहते हुए दुःख हो रहा है कि इस समय भी बहुत कम लोग खद्दर पहनकर आये हैं। आपको अपना कर्त्तव्य समझना चाहिए और चरखा चलाना चाहिए। इसके अतिरिक्त मैं आपसे यह भी आग्रहपूर्वक कहता हूँ कि आप अपने लड़के-लड़कियों को राष्ट्रीय-पाठशालाओं में भेजें। भेंट में मिली इस थैलीका उपयोग में अपने लिए नहीं करूँगा, बल्कि चरखों और करधोंके लिए करूँगा। इसलिए आपसे मेरा सविनय निवेदन है कि आपने जो धनराशि[२] देनेका वचन दिया है उसे पूरा करें। मुझे देखने और मेरे भाषण सुननका कोई उपयोग नहीं है। आपने जो धन देनेका वादा किया है उससे आपको और देशको बहुत लाभ पहुँचेगा। मैं आशा करता हूँ और ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि मैंने जो हिदायतें दी हैं, उन्हें अमल में लाया जाये।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, ९–५–१९२५
  1. यह भाषण विक्रमपुर के निवासियोंकी ओरसे दिये गये अभिनन्दनपत्रके उत्तरमें दिया गया था। ५,५०० रु॰ की एक थैली भी गांधीजीको भेंट की गई थी।
  2. भाषणसे पूर्व डा॰ प्रफुल्लचन्द्र घोषने १५,००० रु॰ जमा करनेके लक्ष्यका उल्लेख किया था।