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२५. भाषण : मलिकन्दा में[१]

८ मई, १९२५

भाषण देते हुए महात्माजीने कहा कि मुझे यह देखकर दुःख हुआ कि आपमें से कुछ लोग खद्दर नहीं पहने हुए हैं। मैं आपसे तीन बातोंके बारेमें कहना चाहता हूँ और मुझे विश्वास है कि यदि आप मेरे सन्देशको क्रियान्वित करेंगे तो स्वराज्य आपको स्वयमेव मिल जायेगा। इस सम्बन्धमें पहली बात यह है कि हिन्दू और मुसलमान आपस में पूरी तरह मेलजोलसे रहें। वे एक-दूसरेके प्रति सहिष्णु बनें और एक-दूसरे से प्यार करें। मैं यह बात जोर देकर कहता हूँ कि अस्पृश्यताके अभिशापको मिटा देना चाहिए। मेरा आपसे आग्रहपूर्ण निवेदन है कि आप खद्दर पहनें और चरखा चलाएँ। हो सकता है कि आपको अपनी आजीविका के लिए कातना आवश्यक न हो, किन्तु यदि आपको देशको विशाल धनराशिको बाहर जाते रहने से बचाना है तो आपको प्रतिदिन कम से कम आधा घंटा सूत कातना चाहिए। मुझे आशा है कि आप डा॰ प्रफुल्लचन्द्रके कुशल पथ-प्रदर्शन में शीघ्र ही कातना सीख लेंगे और विदेशी कपड़ा त्याग देंगे। मैंने सुना है कि यहाँ नाई लोग नामशूद्रोंकी हजामत नहीं बनाते और धोबी उनके कपड़े नहीं धोते। यह अस्पृश्यता है। हिन्दू धर्मका सार सत्य, अहिंसा और प्रेम है; नाइयों और धोबियोंका नामशूद्रोंकी सेवा न करना उनके प्रति प्रेम प्रदर्शित करना नहीं, बल्कि घृणा व्यक्त करना है।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, ९–५–१९२५
 

२६. बातचीतका अंश[२]

८ मई, १९२५

इन चरखोंको देखकर मेरे दिलको चोट पहुँची है। कोई आश्चर्य नहीं, यदि हम यहाँ चरखेको लोकप्रिय नहीं बना पाये। अच्छा हुआ कि मैं यहाँ आ गया। नहीं तो मैं असफलता मिलनेपर गाँववालोंको ही दोष देता। अब मैं देखता हूँ कि सारी गलती हमारी ही है। जरा इन कमजोर चरखों और मोटे तकुओंकी

  1. मलिकन्दामें खादी प्रदर्शनीका आयोजन किया गया था। गांधीजीने हिन्दीमें जो भाषण दिया था, वह उपलब्ध नहीं है।
  2. गांधीजीने ये बातें दिवीरपुर राष्ट्रीय पाठशालाके प्रबन्धक, जतीन्द्रनाथ कुशारीसे कही थीं। बातचीतका विवरण महादेव देसाई द्वारा लिखित गांधीजीकी बंगाल-यात्राके विवरणसे उद्धृत है।
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