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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ओर देखिए। कातनेवालेको सूत कातने के प्रयत्नमें चरखा बहुत ज्यादा घुमाना पड़ता होगा; और जरा इन चरखोंकी घरघराहटका मुलाहिजा तो कीजिए। यदि चरखेकी आवाज लड़कोंके गानेके साथ मेल न खाये तो वे कातते समय गा कैसे सकते हैं? सन्तोषकी बात केवल यह है कि लड़के कातना जानते हैं। उन्होंने इसे उसी प्रकार सुगमतासे अपना लिया है जैसे मछली पानीको अपनाती है। उनके पास अंगुलियोंका कौशल है और मैं देख रहा हूँ कि चरखोंकी हालत बुरी होनेपर भी वे अच्छा सूत कात रहे हैं। यदि चरखे अच्छे होते और तकुवे पतले होते तो वे इससे दुगुना सूत आसानीसे कात लेते। आप कहते हैं कि आपकी अधिक से अधिक गति ३०० गज प्रति घंटा है। मैं यकीन दिलाता हूँ कि जैसे ही आप इन चरखोंमें सुधार कर लेंगे, यह गति ६०० गज प्रति घंटा हो जायेगी। जिस दक्षतासे आपके यहाँके लड़के इन्हें चलाते हैं उससे आपको जान लेना चाहिए कि कताईकी सम्भावनाएँ कितनी बड़ी हैं। यदि आप आज चरखेकी कला और तकनीकको नहीं जानते तो आपको एक वर्षतक कठिन परिश्रम करके उसे अच्छी तरह सीख लेना चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २१–५–१९२५
 

२७. भाषण : दिघीरपुरकी सार्वजनिक सभामें[१]

९ मई, १९२५

दस हजारसे अधिक लोगों की सभा में भाषण देते हुए गांधीजीने कहा कि मुझे दुःख है कि अस्पृश्यता निवारणके लिए कांग्रेसी लोगों द्वारा किये गये प्रयत्न निष्फल रहे। अस्पृश्यता सम्बन्ध में अपने दृष्टिकोणकी सफाई देते हुए उन्होंने कहा कि मैंने यह कदापि नहीं कहा है कि किसीको नामशूद्रोंके साथ एक ही थालीमें बैठकर खाना खाना चाहिए। उस पानीको जिसे मेरी माँने ही जूठा क्यों न किया हो, मैं कभी नहीं पिऊँगा, किन्तु यदि मेरी माँ या अन्य कोई व्यक्ति मुझे साफ बर्तनमें पानी दे तो मेरे लिये उसे लेने से इनकार करना पाप होगा। इसी प्रकार, यदि किसी स्थानके नाई और धोबी अपने नामशूद्र भाइयोंकी सेवा नहीं करते तो यह पाप माना जायेगा। मैं जोर देकर कहता हूँ कि हिन्दू धर्मका मतलब है—सेवा करना और सेवाका मतलब है—समानता और प्रेम। हिन्दू-मुस्लिम एकताके बिना स्वराज्य असम्भव है। इसीलिए मैं अपने दौरोंमें अली भाइयोंमें से किसी एकको अपने साथ रखता हूँ। मुझे यह देख-कर प्रसन्नता होती है कि इस स्थानपर चरखे और खद्दरके सम्बन्धमें कुछ काम हो रहा है। मैं हिन्दुस्तानसे गरीबी दूर करना चाहता हूँ, किन्तु मुझे यह देखकर दुःख

  1. यह भाषण दिवीरपुरके संघ निकाय द्वारा स्थानीय जनताकी ओरसे दिये गये एक अभिनन्दन-पत्रके उत्तरमें दिया गया था।