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भाषण : तालटोलाके कार्यकर्त्ताओंकी बैठकमें

होता है कि यहाँ बहुत कम लोग खद्दर पहने हुए हैं। मुझे प्रसन्नता है कि संघ निकाय (यूनियन बोर्ड) ने मेरे आनेके अवसरपर पाँच चरखे भेंट किये हैं।

अन्तमें गांधीजीने छात्रोंसे सानुरोध कहा कि आप अपने माता-पिताका सम्मान करें, अपने अध्यापकों तथा अपने परिवारके सभी सदस्योंसे प्रेम करें और अपने साथी छात्रोंके साथ सौहार्दपूर्वक रहें।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, ११-५-१९२५
 

२८. भाषण : तालटोला के कार्यकर्त्ताओंको बैठकमें[१]

९ मई, १९२५

सबसे पहले मैं आपसे यह कह देना चाहता हूँ कि हमारी मुक्तिका साधन केवल चरखा है, ऐसा मैंने कभी नहीं कहा। मैंने कहा है कि जनता चरखेके बिना स्वराज्य प्राप्त नहीं कर सकती। किन्तु मैं आज पहली बातका समर्थन करनेके लिए भी तैयार हूँ। मेरा आपसे निवेदन है कि आप अपनी कल्पनाशक्तिसे काम लें। जिस प्रकार आप हिमालयमें देवी-देवताओंकी कल्पना करते हैं, क्योंकि आपका मन पवित्रतासे परिपूर्ण है, उसी प्रकार यदि आप कताईके कार्यक्रमको सफलतापूर्वक कार्यान्वित करनेके बारेमें दत्तचित्त होकर विस्तारपूर्वक विचार करें तो आप कताईकी बड़ी-बड़ी सम्भावनाओंकी अनुभूति करने लगेंगे। जिस कार्यको हम कर रहे हैं, उसे चालू रखनेके लिए महान् प्रयत्नकी आवश्यकता है। लाखों लोगोंको सूत कतवानेके लिए तो और भी अधिक प्रयत्नकी आवश्यकता है। हममें से प्रत्येकको छोटीसे-छोटी बातोंकी ओर ध्यान देना और ठीक अनुशासनमें रहना होगा। कताईको सार्वभौम बना पानेका अर्थ है अन्य अनेक प्रश्नोंका स्वयमेव हल हो जाना। अस्पृश्यताकी समस्याको ही लीजिए। अस्पृश्यताकी समस्याको हल किये बिना चरखेका प्रयोग व्यापक करना असम्भव है। क्या आप नहीं जानते हैं कि जबतक अस्पृश्योंको नहीं अपनाया जाता, तबतक वे खद्दरसे कोई वास्ता न रखेंगे? वे कहेंगे, "जब हम अस्पृश्य माने जाते हैं, तब हम खद्दरका क्या करेंगे?" और जबतक उनका सहयोग नहीं मिलता तब-तक आप खादी के कार्यक्रमको पूरी तरह सफल नहीं बना सकते। यही बात हिन्दू-

  1. कार्यकर्त्ताओंकी एक बैठकका आयोजन किया गया था, किन्तु यह सोचकर किं नावमें बैठक कर लेना ज्यादा सुविधाजनक रहेगा, कार्यकर्त्ता गांधीजीके साथ नावसे नारायणगंजतक गये। डॉ॰ प्रफुल्लचन्द्र घोष गांधीजीके साथ थे। उन्होंने कहा कि 'कार्यकर्त्ताओंका विश्वास क्षीण होता जा रहा है। उनमें से बहुत-से लोग यह विश्वास नहीं करते कि चरखेमें ही हमारी मुक्ति है, यद्यपि वे उसकी आर्थिक उपयोगिता मानते हैं। किन्तु हममें से कुछ लोग महसूस करते हैं कि यह उपयोगिता किसी मतलब की नहीं है और कांग्रेसका सदस्य बनना अनावश्यक है। मेरी प्रार्थना है कि यदि हो सके तो आप हमारे सन्देहों को दूर करके हमारे विश्वासको दृढ़ बनायें।' गांधीजीने इन सन्देहोंको ध्यान में रखकर भाषण दिया।