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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

काम लेना होगा, ऐसी व्यवस्था करनी होगी जिससे अभी जो गायें और भैसें है उन्हींसे लोगोंको और ज्यादा दूध मिल सके; और हमें मरे हुए पशुओंके चमड़ेका भी अधिकसे-अधिक अच्छा उपयोग करना होगा। अगर हम यह सब कर ले तो उसका मतलब यह होगा कि मवेशियोंकी समस्याको हमने काफी हदतक हल कर लिया।

लेकिन, तब भी अपनी धार्मिक भावनाके लिए हमें एक कीमत तो चुकाते ही रहनी पड़ेगी। जिस धार्मिक भावनाके लिए कोई कीमत नहीं चुकाई जा सकती हो, उस धार्मिक भावनाको धार्मिक भावना कहना गलत होगा। वैज्ञानिक तथ्योंसे पूरी तरह अनभिज्ञ रहकर लोग गोरक्षाके नामपर रोज-रोज जो अन्धाधुन्ध धन दे रहे हैं, उसका उपयोग उपर्युक्त कार्योंमें किया जा सकता है। इससे कोई सीधा लाभ तो नहीं होगा। लेकिन आज जो जबर्दस्त बर्बादी हो रही है, वह बेहतर परिस्थितियोंके निर्माणपर रुक जायेगी, और उसका यह परिणाम तो होगा ही कि आज मुसलमानों या अंग्रेजोंके दुराग्रहके कारण नहीं, बल्कि हिन्दुओंकी मूर्खताके कारण जो हजारों पशु कसाइयोंके छुरेका शिकार होते है, उनकी जान भी बच जायेगी। आज तो हमारे अज्ञान और आलस्यके कारण करोड़ों मानव और करोड़ों पशु अध-भूखे रहकर तिल-तिल मर रहे है। धर्म-प्राण भारतके लिए यह कैसी विडम्बनाकी बात है।

उत्तरोत्तर प्रगति

बहरोकके सत्याश्रममें ग्यारह दिनोंमें ही कताईकी जो प्रगति हुई थी, उसके सम्बन्धमें मेरी टिप्पणी[१] पाठकोंको याद होगी। अब मुझे एक दूसरा पत्र मिला है, जिसमें उसके बाद की प्रगतिका हाल बताया गया है। पत्र नीचे दे रहा हूँ[२]

अगर अधिकारी लोग चरखेमें अपना विश्वास बराबर कायम रखेंगे, तो मुझे कोई सन्देह नहीं कि कताईमें भी बराबर प्रगति होती रहेगी।

कांग्रेसका सूत

कांजीवरमूसे एक भाई लिखते हैं :[३]
बड़ा बाजारसे दूसरे भाई लिखते हैं :[४]
 
  1. देखिए खण्ड २७, पृष्ठ २२३।‌
  2. यह पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। पत्र लेखक ने प्रगति का हाल बताते हुए लिखा था कि जब आप यहाँ आये थे उस समय जहाँ इस इलाके में प्रतिमास सिर्फ एक दो सेर सूत ही काता जाता था, वहाँ अब आधा मन काता जाता है। उन्होंने इस क्षेत्रमें राष्ट्रीय शालाके छात्रोंकी प्रगतिकी प्रशंसा करते हुए गांधीजीकी सहानुभूति और आशीर्वादकी कामना की थी।
  3. यह पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। पत्रलेखक ने शिकायत की थी कि कांजीवरमुसे अप्रैल १९२५ तक १८ हज़ार गज सूत भेजा गया, लेकिन पूछताछ करने पर ना जिला कमेटी और न ही प्रांतीय कमेटी ने बताया कि उसका क्या हुआ‌। गांधीजी सीधे उन्हीं के पास सूत भेजने की अनुमति मांगी थी।
  4. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। इसमें पत्र-लेखकने यह शिकायत की थी कि मैं जिला कांग्रेस कमेटीको नियमित रूपसे सूत भेजता हूँ, लेकिन उसका क्या किया जाता है, इस बातका उत्तर मिलता है कि उसे चहे खा रहे है। इसलिए मैं चाहूँगा कि आप स्थितिकी जाँच करके कोई निराकरण करें।