७५. टिप्पणियाँ
बंगालके दौरेका अन्त
बंगालके दौरेका अन्त बंगालका दौरा अगस्त मासके अन्तमें पूरा होगा। इसका मतलब यह हुआ कि यहाँ मैं जितना सोचा था उससे डेढ़ महीने ज्यादा रहूँगा।[१] इस बार बंगालियोंसे मेरा जैसा परिचय हुआ, वैसा पहले नहीं हुआ था। अनेक तरहके बंगालियोंका मीठा अनुभव मुझे हुआ है। पर इस समय में उन अनुभवोंका वर्णन करना नहीं चाहता। इस समय तो ये पंक्तियाँ मैं गुजरातियोंको लक्ष्य करके लिख रहा हूँ।
मैं दादाभाई शताब्दी-समारोहके सिलसिलेमें ३ तारीखको बम्बई पहुँचनेवाला हूँ। ४ तारीखको शताब्दी-समारोह मनाकर मैं ५ तारीखको आश्रम पहुँचनेकी आशा रखता हूँ। ९ तारीखको आश्रम छोड़ देना होगा। इन चार दिनोंमें मैं बहुतेरे कामोंको निबटानेकी आशा रखता हूँ। उसमें काठियावाड़ राजकीय परिषद्के[२] कामका हिसाब भी देना चाहता हूँ। परिषद्ने अपने कार्यमें खादीको प्रधान स्थान दिया है। वह काम किस हदतक हुआ है, इसका हिसाब देवचन्दभाई[३] देंगे। मेरी दृष्टिमें तो जितना काम करनेका विचार था, उसके हिसाबसे ठीक काम हुआ है। कार्यकर्ता खाली नहीं बैठे रहे हैं।
अब रहा राजकीय काम। इसका भार कुछ अंशोंतक मैंने अपने सिर ले लिया था। यद्यपि मैं पिछले दिनों गुजरातमें नहीं रहा, फिर भी मैं उसे भूला नहीं हूँ। इसका अर्थ यह नहीं कि कुछ सफलता भी मिली है। यहाँ तो मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहता हूँ कि मैंने जो सलाह काठियावाड़को दी, उसके लिए मुझे जरा भी पछतावा नहीं है।[४] अनुभवसे मेरा यह विश्वास पुष्ट ही हुआ है कि मैंने ठीक सलाह दी।
देशी राज्योंमें जहाँ-जहाँ अन्धेर हो रहा है, उसे सर्वत्र दूर करनेका प्रश्न विकट है। दूर करना असम्भव नहीं है; पर उसका सम्बन्ध है प्रजाकी शक्ति बढ़ानेसे और राजाओंको शिक्षा देनेसे। प्रजाकी शक्ति बाहरी आन्दोलनसे नहीं बढ़ सकती, बल्कि उसे शिक्षा देनेसे ही बढ़ेगी। इसलिए राजकीय प्रश्नका सच्चा अर्थ रचनात्मक कार्य ही है। इस बातमें भले ही मतभेद हो कि वह चरखा हो या कुछ और, पर वह समय नजदीक आ रहा है जब सब लोग इस बातको कबूल करेंगे कि राजनीतिक