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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

छोटे सैकड़ों तालाब नहाने-धोने तथा मवेशी और इन्सानके पानी पीने के काममें आते हैं।

परन्तु श्री एन्ड्रयजके एक मित्रकी शिकायत तो यह है कि किसान जहाँ चाहे वहाँ टट्टी-पेशाब करके जमीन खराब करते है। उसपर पानी बरसता है। और वह सारा मैला पानी में मिल जाता है। लाखों लोग नंगे पैर चलते हैं, जिससे उन्हें नारू निकलते हैं, पेचिश वगैरह रोग होते हैं। असंख्य लोग तकलीफ पाते हैं और बेशुमार बे-मौत मर जाते है। इस मैलेकी बढ़िया खाद बन सकती है। चीनके लोग उसकी खाद बनाकर करोड़ों रुपये बचाते हैं, तब हिन्दुस्तानके लोग भी क्यों नहीं बचाते और तन्दुरुस्त रहते? दक्षिण अमेरिकामें पहले हिन्दुस्तानकी जैसी हालत थी। पुरुषार्थसे उन्होंने उसे बीस सालमें ही बदल डाला और वहाँके लोग बहुतेरे रोगोंसे बच गये।

हम भी मनमें निश्चय कर लें तो बच सकते है। किस तरह बच सकते हैं, इसका विचार अगले सप्ताह करेंगे।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ३०–८–१९२५
 

७७. पत्र : प्रतापचन्द्र गुह रायको

[१ सितम्बर, १९२५ से पूर्व]

मैं तो समझता था कि आप आत्मसमर्पण कर चुके। आज सुबह ही आपका खयाल आया था; और मुझे लगा, आप मुझसे मिले बिना ही चले गये। यह जानकर प्रसन्नता हुई कि आप आ गये। जेल में अच्छी तरह रहिएगा और आत्मचिन्तन कीजिएगा। यदि हमें स्वराज्य जल्दी ही प्राप्त करना है तो उसके लिए अभी बहुत काम शेष है। हमें सता तो हासिल करनी ही है, लेकिन वह विवेकपूर्वक यज्ञ-धर्मका आचरण किये बिना नहीं प्राप्त हो सकती। मैं जानता हूँ कि चरखा चलाना सबसे अच्छा और पवित्र यज्ञ है, क्योंकि उसमें स्वार्थका लेश भी नहीं है। चरखा चलाते समय हमारा ध्यान सहज ही भारतके करोड़ों मूक प्राणियोंकी ओर जाता है। मैं इससे अच्छा कोई दूसरा उपाय नहीं जानता।

[अंग्रेजीसे]
फॉरवर्ड, १–९–१९२५