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८६. भाषण : दादाभाईकी शताब्दीके अवसरपर[१]

४ सितम्बर, १९२५

महात्मा गांधीने कहा, मैं भारतके पितामह दादाभाई नौरोजीका सच्चा पुजारी हूँ। जो व्यक्ति अपने कर्तव्यका पालन करे और उसका पालन करने में प्राण दे दे, उसका नाम कभी मिट नहीं सकता। यद्यपि दादाभाई आज शारीरिक रूपसे हमारे बोच नहीं हैं और हम उनकी मधुर आवाज भी नहीं सुन सकते, फिर भी उनकी आत्मा हमारे बीच विद्यमान है। जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है, उनका नाम हमें और भी प्रिय होता जा रहा है और वह हमारे दिलोंमें और भी गहरा उतरता जा रहा है। उनके चरणोंमें बैठकर कुछ बातचीत करनेका अवसर मुझे १८८८ में मिला था। आजकी तरह उन दिनों भी में समाचारपत्र नहीं पढ़ता था, फिर भी मैंने उनका नाम सुन रखा था। एक दाक्षिणात्य सज्जनने, मुझे उनके नाम एक परिचय-पत्र दिया था, यद्यपि दादाभाईसे स्वयं उनकी जान-पहचान भी नहीं थी। इंग्लैंड पहुँचनेपर एक दिन में यह पत्र लेकर उनके पास गया। दादाभाई पत्र-लेखकसे परिचित नहीं थे, फिर भी उन्होंने मुझे हृदयसे लगा लिया और कहा, "यदि तुम्हें किसी प्रकारको काठिनाई हो तो मेरे पास आ जाना। दादाभाई इंग्लैंडमें जीवनका आनन्द लूटने, कोई खेल-तमाशा करने या नाटक-वाटक देखनेके लिए नहीं, बल्कि भारतकी सेवा करने के लिए रह रहे थे। वे वहाँ बहुत-से भारतीय विद्यार्थियोंकी देख-रेख और उनके अभिभावकका काम करते थे। लेकिन यदि उन्होंने सिर्फ इतना ही किया होता तो भारतके लोग, भारतको जनता उन्हें इस तरह याद न करती। उन्होंने और भी बहुतकुछ किया। दादाभाई खुद कभी गाँवोंमें नहीं रहे थे, परन्तु उनके विशाल हृदयमें गरीब ग्रामवासियोंके लिए पूरा स्थान था। उनके हृदयमें न केवल सभी भारतीय जातियोंके लिए स्थान था, बल्कि गरीबसे-गरीब भारतीयके लिए भी पूरी जगह थी। वे जानते थे कि हमारे ग्रामवासी मूक हैं और इसलिए वे चाहते थे कि देशके शासक मूक किसानोंकी आवाज सुनें। उन्हें मालूम था कि इन किसानोंको दिनमें एक बार भी भरपेट भोजन नहीं मिलता—घी और दूध-जैसी चीजोंकी तो बात ही क्या? दादाभाईने आजसे ३०-४० वर्ष पहले जो बात कही थी, वह आज भी सच है। वे जानते थे कि जबतक अधिकांश भारतीय नर-कंकाल हड्डियोंके ढाँचे मात्र बने हुए हैं तबतक वे कुछ भी नहीं कर सकते। इंग्लैंडमें दादाभाईके पास दफ्तरका काम करनेके लिए एक छोटा-सा कमरा था, और वे वहाँ भारतको सेवामें लीन योगीकी तरह रहते थे।

  1. बम्बईकी तेरह प्रमुख स्थानीय संस्थाओंके प्रतिनिधियों द्वारा कावसजी जहाँगीर हॉलमें आयोजित इस सभाकी अध्यक्षता गांधीजीने की थी। सरोजिनी नायडू और शौकत अलीने भी इसमें भाषण दिया था।