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९५. पत्र : जेठालाल मन्सूरको

साबरमती आश्रम
मंगलवार, [१० सितम्बर, १९२५ के पश्चात्][१]

भाई जेठालाल,

तुम्हारा पत्र मिला। न्यास-पत्र[२] कहाँ है? वह दस्तावेज कहाँ है जिसमें कहा गया है कि जमीन राज्यकी[३] ओरसे दानमें दी गई है? पुजारी कौन होगा? इन तीन प्रश्नोंके उत्तर मिल जानेपर में पैसा तुरन्त भेज दूँगा। ऐसा है कि जितना पैसा तुम इकट्ठा करोगे उतना ही राज्य देगा और उतना ही में दूँगा।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ १११३५) की माइक्रोफिल्मसे।

 

९६. भाषण : पुरुलियामें[४]

१२ सितम्बर, १९२५

महात्माजोने सबसे पहले भेंट किये गये मानपत्रोंके लिए जिला बोर्ड तथा नगरपालिकाके सदस्यों को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि एक मानपत्रमें देशबन्धु चित्तरंजन दासका उल्लेख करते हुए उनके स्वर्गवासपर शोक प्रकट किया गया है। यह सर्वथा उपयुक्त है।[५] यद्यपि देशबन्धुका स्वर्गवास हुए कई महीने हो गये है, फिर भी हम उनके वियोगके दुःखको भूल नहीं पाये हैं। पुरुलिया आनेसे पहले ही मुझे मालूम था कि यह शहर देशबन्धुका विश्राम-स्थल था। और जिस दिन मैं इस नगरमें स्थित उनके घर गया, मुझे यह सोचकर बड़ा दुःख हुआ कि उनके घर आनेका मौका मिला भी तो उनके निधनके बाद। आप लोगोंने देशबन्धुकी स्मृतिको कायम रखनेके लिए जो-कुछ किया है, उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। दोनों मानपत्रोंमें खद्दर और चरखेका उल्लेख किया गया है। चरखा मेरा जीवन-मन्त्र बन गया है। मुझे लगता है कि भारतको गरीबी दूर करनेका और कोई साधन नहीं है। बिहारकी

 
  1. न्याय-पत्र और दानके दस्तावेजके उल्लेखसे लगता है कि यह पत्र पिछले शीर्षकके बाद लिखा गया होगा।
  2. लाठीके हरिजन-मन्दिरका न्यासपत्र।
  3. लाठी राज्य।
  4. जिला मानभूम, बिहारमें।
  5. मानपत्र स्वीकार करनेके बाद गांधीजीने चित्तरंजन दासके चित्र का अनावरण किया था।