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भाषण : अन्त्यजोंकी सभा, पुरुलियामें


परन्तु अन्त्यजोंसे मेरी एक प्रार्थना है। आपके समाजमें जो बुराइयाँ आ गई हैं, आप उन्हें दूर करनेका प्रयत्न अवश्य करें। मैं अपनी बंगाल-यात्राके दौरानमें संयुक्त प्रान्त और बिहारके कई अन्त्यज भाइयोंसे मिला। उनसे मुझे मालूम हुआ कि उनमें शराब पीने और जुआ खेलनेका दुर्व्यसन है। यह सच है कि आजकल दूसरे हिन्दू, यहाँतक कि ब्राह्मण भी, शराब पीने और जुआ खेलने के दुर्व्यसनोंसे ग्रस्त हैं। परन्तु हमें दूसरोंकी बुराइयोंका अनुकरण नहीं करना चाहिए। इसलिए मैं अपने डोम और दूसरे अन्त्यज भाई-बहनोंसे यही प्रार्थना करता हूँ कि ईश्वरके लिए आप इन दुर्व्यसनोंसे दूर रहें।

किसी औरसे नहीं बल्कि स्वयं आप लोगोंसे ही मुझे मालूम हुआ कि आप सब भ्रष्टाचार, अनैतिकता और असत्यके भी शिकार हैं। आपको अपने अन्दरसे ये बुराइयाँ भी दूर करनी है।

यदि आपने तुलसीकृत 'रामायण' पढ़ी है तो आप जानते होंगे कि रामचन्द्र, सीता और लक्ष्मणने अत्यन्त स्नेहपूर्वक गुहको, जो कि अन्त्यज थे, हृदयसे लगाया था। मैं चाहता हूँ कि भारतमें एक बार फिर वैसा ही हो। जो चाण्डाल माने जाते हैं, वे भी अपनी बुराइयोंको दूर करें और श्री रामचन्द्रके भक्त बन जायें। मेरी आपसे यह भी प्रार्थना है कि आप विदेशी वस्त्रोंका उपयोग त्याग दें और हाथ-कते सूतके, हाथसे बुने कपड़े ही पहनें। आपको याद रखना चाहिए कि श्री रामचन्द्रके जमानेमें धनी, निर्धन, सभी देशमें तैयार की गई खादी पहनते थे, विदेशी वस्त्रका उपयोग कोई नहीं करता था।

साथ ही अन्त्यजोंके अलावा जो अन्य लोग यहाँ उपस्थित हैं, उन्हें मैं बताना चाहता हूँ कि हिन्दू-धर्ममें अस्पृश्यताका कोई स्थान नहीं है।

इस विषयमें व्यक्तिगत रूपसे मुझे दृढ़ विश्वास है। जिस दिन मुझे यह विश्वास हो जायेगा कि अस्पृश्यता हिन्दू-धर्मका अनिवार्य अंग है उसी दिन में हिन्दू-धर्म त्याग दूँगा। हम शास्त्रों और वेदोंको ईश्वरीय वाणी मानते हैं। फिर ईश्वरीय वाणीमें जाति-विशेषके सदस्योंके प्रति घृणाका समर्थन कैसे हो सकता है? जबतक हिन्दू अपने बीच अस्पृश्यताको सहन करते रहेंगे और अपने अन्त्यज भाइयोंसे घृणाका व्यवहार करेंगे तबतक दूसरे राष्ट्र भी हमारे राष्ट्र के साथ अछूतोंका-सा व्यवहार करेंगे, जैसा कि वे आज करते हैं।

और इसी प्रकार मुझे पूरा विश्वास है कि जबतक हम हिन्दू-समाजसे अस्पृश्यता रूपी बुराई नहीं दूर कर पाते, हमें स्वराज्य नहीं मिल सकता। 'रामायण' और तुलसीदासने तो दयाधर्मको शिक्षा दी है। इसलिए ऊँची जातियोंके जो हिन्दू यहाँ उपस्थित है उनसे मेरा अनरोध है कि यदि वे अपने आपको सनातनधर्मी मानते हैं, यदि उनके मनमें गायके लिए आदर है, तो उन्हें अस्पृश्य जातिके लोगोंसे घृणा नहीं करनी चाहिए। ईश्वर आप सबका कल्याण करे।

[अंग्रेजीसे]
सर्चलाइट, २०–९–१९२५