१०२. पत्र : महादेव देसाईको
भाद्रपद बदी १३ [१५ सितम्बर, १९२५][१]
चि॰ महादेव,
तुम्हारे दो पत्र मिले हैं। कल तार[२] किया है, मिला होगा। मैं चाहता हूँ कि तुम दुर्गाको[३] दुःखी करके न आओ। गुजराती लिखने का काम जैसे-तैसे चला लूँगा। दलाल ने कहा है कि [मुझे] दायाँ हाथ थोड़ा बहुत तो लिखने में इस्तेमाल करना ही चाहिए। इसलिए 'नवजीवन' के लिए तो उसका इस्तेमाल करने ही लगूँगा। अंग्रेजी [लेख] तो क्रिस्टोदास और प्यारेलालको लिखाऊँगा। सेनने खबर भेजी है कि वह नहीं आ सकेगा।
तारमें रामदासके बारेमें जो लिखा है वह तुम समझ गये होगे। सतीशबाबू मेरे साथ हैं। पुरुलियामें तो उनके भाई, हेमप्रभा देवी और प्रफुल्ल घोष भी मेरे साथ थे। उर्मिला देवी नहीं आई, मीना भी नहीं। कार्यक्रम निम्नलिखित है :
- १७ राँची
- १८ हजारीबाग
- १९ गया और उसी रातको पटना।
- १९-२४ पटना
- इसके बादका पता नहीं।
बापूके आशीर्वाद
गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ ११४३३) की फोटो-नकलसे।
१०३. भाषण : चक्रधरपुरकी राष्ट्रीयशालामें
१५ सितम्बर, १९२५
श्रीयुत राजेन्द्रप्रसाद और सतीशबाबूके साथ महात्माजी आज सबेरे चक्रधरपुर पहुँचे। राष्ट्रीय पाठशालाके विद्यार्थियोंके समक्ष भाषण करते हुए महात्माजीने कहा कि प्राचीन काल में शिष्य गुरुके पास 'समित्याणि' जाता था, अर्थात् हाथमें समिधा लेकर जाता था, जिससे यह व्यक्त होता था कि वह शिक्षा प्राप्त करने और बदलेमें सेवा करने आया है। शिक्षाको आधुनिक पद्धतिने उसकी सेवाका रूप बदल