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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

के नाम गिनाये हैं उनमें से किसीके भी त्यागकी बात इस आन्दोलनमें नहीं है। वर्तमान आन्दोलनमें मैं न तो रेल गाड़ियोंका विरोध कर रहा हूँ और न अस्पतालोंका, पर एक आदर्श राज्यमें उनके लिए कोई स्थान नहीं देखता। वर्तमान आन्दोलन ठीक वैसा ही प्रयास है जैसा कि लेखक महोदय चाहते हैं। तथापि यह आन्दोलन मशीनोंको आध्यात्मिक रंग देने का प्रयत्न नहीं है, यह आन्दोलन अगर सम्भव हो तो—क्योंकि मुझे तो वह असम्भव-सी बात मालूम होती है—यन्त्रोंका संचालन करनेवाले मनुष्योंमें मानवीयता और करुणाकी भावना पैदा करनेका प्रयत्न है। धन और सत्ताको थोड़े ही लोगोंके हाथों में केन्द्रित करने और विशाल जन-समुदायका शोषण करनेकी नीतिसे मशीनोंका नियोजन मैं बिलकूल अनुचित मानता है। आजकल मशीनोंका अधिकांशतः ऐसा ही उपयोग हो रहा है। मशीन आज जहाँ है वहाँ उसका उपयोग केवल स्वार्थसाधनके लिए और कमजोरोंके शोषणके लिए हो रहा है; चरखेका आन्दोलन उसे उसकी इस स्थितिसे हटाकर उपयुक्त स्थानपर बिठानेका प्रयास है। अतएव, मेरी योजनामें यन्त्र उद्योगके संचालक न केवल अपना, या अपने राष्ट्रका ही, बल्कि सारे मानव-समाजका विचार करेंगे। मसलन लंकाशायरका अपने यन्त्र-उद्योगका उपयोग भारत तथा दूसरे देशोंकी आर्थिक लूटके लिए करना बन्द हो जायगा, और इसके विपरीत वे ऐसे उपाय सोचेंगे जिससे भारतवर्ष अपनी कपासको खुद अपने ही गाँवोंमें कपड़के रूपमं परिवतित कर सके। इसी तरह मेरी योजनाके अन्तर्गत अमेरिकी लोग भी अपने आविष्कार सम्बन्धी बुद्धि-कौशलके द्वारा पृथ्वीको दूसरी जातियोंको लूट कर अपनेको मालामाल करनेकी बात न सोचेंगे।

अमेरिका-जैसे देशमें जिसकी परिस्थितियाँ इतनी अनुकूल हैं, क्या यहाँको उत्तम वैचारिक चेतनाको इतना जाग्रत करना, उसकी विकास-धाराको ऐसी दिशामें प्रेरित करना सम्भव नहीं है जिससे उसमें इतनी शक्ति, इतना साहस, ऐसी उदारता आ जाये जो भारतके करोड़ों नर-नारियोंको आत्माको, और भारतको ही क्यों सारी दुनियाके सारे मानव-समाजकी आत्माको मुक्त कर दे?

यह जरूर सम्भव है। अवश्य ही मुझे यह आशा है कि अमेरिका सर्वोत्तम मानवीय चेतनाको विकसित करनेका उद्योग करेगा; पर शायद वह समय अभी नहीं आया है। शायद वह समय भारत द्वारा स्वराज्य प्राप्तिके पहले न भी आये? इससे बढ़कर खुशी मुझे और किसी बातसे नहीं हो सकती कि अमेरिका और यूरोप अपनीअपनी शक्ति-भर भारतके दुर्गम पथको सुगम बनायें। वे भारतके रास्तेमें जो-जो प्रलोभन हैं उन्हें हटाकर, और उसे अपने प्राचीन उद्योगोंका अपने गाँवोंमें पुनरुत्थान करने के लिए उत्साहित करते हुए ऐसा कर सकते हैं।

इसका क्या कारण है कि दूर देशमें मुझ-जैसे लोग आपके कृतज्ञ है और आपका अनुकरण करने के लिए उत्सुक है? क्या इसके ये दो कारण मुख्य नहीं है : पहला, आज सारे संसारकी सर्वप्रथम और बुनियादी आवश्यकता एक नई आध्यात्मिक चेतना है—सामान्य मनुष्यके विचार और भावमें इस प्रतीतिको आवश्यकता कि मानवमात्रमें समान देवी अंश है, सब एक हैं और आपसमें बंधु हैं? दूसरा, अन्य किसी विख्यात