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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लायक वे होते हैं। दूसरी भाषामें कहूँ तो स्वराज्य स्व-प्रयत्नके ही द्वारा प्राप्त हो सकता है।

क्या सब जगह व्यक्तियोंमें इस आत्म-बलके स्पष्टीकरण और विकासको आवश्यकता ही बुनियादी आवश्यकता नहीं है—जो कि शायद थोड़े लोगोंसे शुरू होगा और एक दैवी स्पर्शकी तरह बहुतसे लोगोंमें फैल जायगा?

हाँ, जरूर है।

आपकी यह शिक्षा ठीक ही है कि ऐसे आत्म-बलका ठीक-ठीक विकास होनेसे भारतकी आजादी सुनिश्चित हो जायेगी। क्या यह आत्म-बल ही सर्वत्र सभी राजनैतिक, आर्थिक और अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं, जिनमें युद्ध और सुलहके प्रश्न भी शामिल हैं, के स्वरूपको निर्धारित नहीं करेगा? क्या आज, जबकि सारा मानव-समाज परस्पर पड़ोसी है, मानव सभ्यताके उन अंगोंको भारतमें शेष संसारको अपेक्षा श्रेष्ठ बनाया जा सकता है?

इसका उत्तर में ऊपरवाले अनुच्छेदोंमें पहले ही दे चुका हूँ। मैं 'यंग इंडिया' में कई बार लिख चुका हूँ कि भारतकी स्वाधीनतासे संसार-भरमें शान्ति तथा युद्ध सम्बन्धी दृष्टिकोण में क्रान्तिकारी परिवर्तन हो जायेगा। भारतकी पौरुषहीनताका असर सारे मानव-समाजपर पड़ रहा है।

मेरी अथवा अन्य किसी व्यक्तिकी अपेक्षा आप इस बातको ज्यादा अच्छी तरह जानते हैं कि इन प्रश्नोंका उत्तर किस प्रकार दिया जाये। यहाँ मैं आपके सिद्धान्तके प्रति अपनी हार्दिक श्रद्धा व्यक्त करने का इच्छुक हूँ। अमेरिका और समस्त मानवजातिकी उन समस्याओंको सुलझाने के बारेमें, जिनके हल किये जाने की तत्काल आवश्यकता है, मैं आपके नेतृत्वकी ओर बड़ी उत्कण्ठासे निहार रहा हूँ। इसलिए क्या आप कृपा करके इस बातको याद रखेंगे कि यदि (और जब) वह समय आये कि भारतके उत्थानके लिए आपने जो दिशा इतनी प्रेरणापूर्वक निर्धारित की है, उस दिशामें प्रगतिके कदम कुछ रुकें—इस इन्तजारमें कि पीछे पड़ गई पश्चिमी दुनिया बराबरतक पहुँच ले—तो हम पश्चिमके निवासियोंका यह निमन्त्रण आप अपनी सेवामें बराबर मानें कि आप कुछ महीनों अपना समय हमें दें और हमारे पास रहें। मेरी अपनी भावना तो यह है कि यदि आप हमें बुलायेंगे और आदेश देंगे तो हम (इस विशाल धरापर बिखरे हुए आपके अज्ञात अगणित अनुयायी) एक ऐसे नये और उदात्त विश्व-व्यापी मानवसमाजके अन्वेषण और उसकी स्थापनाके लिए आपके साथ चल पड़ेंगे जिसमें कि बन्धुत्व, जनसत्ता, शान्ति और आत्मोन्नतिका चिरकालीन स्वप्न भारत, इंग्लैंड, अमेरिका इत्यादि देशोंके निवासियोंके जीवनमें अङ्कित हो जाएगा।

क्या ही अच्छा होता यदि सारी दुनियाका नेतृत्व करनेकी अपनी शक्तिपर मेरा विश्वास होता। मुझमें मिथ्या विनय नहीं है। यदि मेरे मनमें ऐसी प्रेरणा हुई तो मैं ऐसे हार्दिक निमन्त्रणको स्वीकार करने में एक क्षणको भी देरी न करूँगा।