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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

गोशालाओंका गणना-पत्रक

पाठक जान लें कि अ॰ भा॰ गोरक्षा मण्डलका काम चींटीकी तरह धीमी गतिसे ही सही, पर चल रहा है।

पिछली सभामें भारतवर्षकी मौजूदा गोशालाओं और पिंजरापोलोंका गणनापत्रक कुछ बातोंके ब्यौरे सहित तैयार किये जानेका प्रस्ताव पास हुआ था। कुछ गोशालाओंका विवरण तो मिलता है; पर सभी गोशालाओंके विवरण मिलने चाहिए। विवरणमें नीचे लिखी बातोंकी तफसील होनी चाहिए :

  1. नाम।
  2. स्थान।
  3. प्रारम्भ होनेकी तिथि।
  4. ब्यौरे सहित जानवरोंकी संख्या (जैसे कि गाय, भैंस, अपंग और दूध न देनेवाली गायें और भैसें; बैल, साँड आदि)।
  5. जमीन और इमारतोंका विवरण इत्यादि।
  6. आमदनी और खर्च।
  7. समितिके सदस्योंके नाम, आदि। कोई पत्रिका छपती हो तो वह भी भेजें।
  8. प्रचारकोंकी आवश्यकता है या नहीं?
  9. बूचड़खाना कितनी दूरीपर है?
  10. वहाँ मवेशी बाजार है या नहीं?

प्रत्येक गोशाला और पिंजरापोलके संचालकसे प्रार्थना है कि वे इतनी जानकारी देनेवाला पत्रक श्री नगीनदास अमुलखराय (होमजी स्ट्रीट, हनुमान बिल्डिग, फोर्ट, बम्बई—१) को भेजें। चौंडे महाराजने जहाँतक हो सकेगा कार्यकर्ता भेजकर सब व्यौरा प्राप्त करने की जिम्मेदारी स्वीकार की है। मैं मान लेता हूँ कि जहाँ-जहाँ चौंडे महाराजके सेवक पहुँचेंगे, वहाँ-वहाँ संचालक उन्हें मदद करेंगे।

गुजरातका विवरण

आजके अंकमें अन्यत्र गुजरात प्रान्तीय कमेटीका आँकड़ों सहित विवरण प्रकाशित किया गया है। इन आँकड़ोंसे बहुत कुछ सीखा जा सकता है। इससे बहुत-सी बातें स्पष्ट हो जाती है। मैं इससे निराश नहीं होता, लेकिन मैं देखता हूँ कि गुजरातमें सूत कातनेका मताधिकार आशाके अनुसार सफल नहीं हुआ। वह निष्फल ही हो गया है, ऐसा नहीं मानता; क्योंकि जो ५८० सदस्य रह गये हैं यदि वे अपने धर्मका पालन करें तो हमें उनसे बहुत-कुछ मिल सकता है। फिर भी इन आँकड़ोंसे तीन बातें स्पष्ट होती है।

१. हम वचनका मूल्य पूरी तरह नहीं समझते।
२. हममें उद्यमकी कमी है।
३. काम केवल वहीं हो पाता है, जहाँ कार्यकर्त्ता हों।