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बिहारका दौरा

मित्र हो गये हैं। कुष्ठाश्रमोंमें रहनेवालोंके चेहरोंपर क्लेशका कोई भाव नहीं दिखाई दिया। अपने सुपरिटेंडेंटके प्रेममय व्यवहारके कारण वे अपने दुःखको भूल गये थे। पुरुलियामें मुझे बताया गया कि तेलके इन्जेक्शनसे, खासकर आरम्भिक अवस्थामें, कुष्ठ दब जाता है। सुपरिन्टेंडेंटने मुझे यह भी बताया कि जिन लोगोंकी खाल गल गई थी या परके अँगूठे और अँगुलियाँ गल गई थीं उनका रोग देखने में भयंकर जरूर था पर संक्रामक बिलकुल नहीं था। ऐसे मामलोंमें बीमारी अपना काम पूरा कर चुकी थी। वह न तो संक्रामक ही थी और न उसका कोई इलाज था। छतके रोगी तो वे लोग थे जो न तो अपने को खुद ऐसा समझते थे और न लोग ही उन्हें वैसा समझते थे। ये ऐसे मामले है जिनमें इन्जेक्शनसे पूरा आराम हो जाता है। हमारे लिये यह लज्जाकी बात है कि इस रोगसे पीड़ित मनुष्योंकी देखभाल करनेका अत्यन्त आवश्यक और मानवीय काम केवल विदेशी ईसाई लोग ही कर रहे हैं। वे तो इसके लिए आदरके पात्र हैं। किन्तु हम अपने लिए क्या कहें? पाठक यह जानकर दु:खी होंगे कि देशमें कुष्ठ रोग बढ़ रहा है। इसका सामान्य कारण अशुद्ध रहनसहन और अनुपयुक्त आहार बताया जाता है।

बिहारके और हिस्सोंसे भिन्न, पुरुलिया और उसके आसपासके क्षेत्रमें मुख्यतः बंगला-भाषी लोग रहते हैं। कलकत्तेसे उसका जलवायु बेहतर है और ठंडा भी है। बंगाली लोग पुरुलियाको स्वास्थ्य-सुधारका स्थान समझते हैं। देशबन्धुके पिताने पुरुलियामें एक सुन्दर घर बनवाया था। मैं उसी घरमें ठहराया गया था। देशबन्धुके स्वर्गवासके बाद उस घर में ठहरते हुए मुझे दुख हुआ। उनके माता-पिताकी समाधियाँ उस मकानके अहातेमें एक कोनेमें है। जहाँ-जहाँ उनकी चिता-भस्म गड़ी है वहाँ एक सीधा-सादा आडम्बरहीन चबूतरा बना है। सामने ही एक मकान टूटी-फूटी अवस्थामें है जो कि देशबन्धुकी एक बहनने बनवाया था। उसमें वे एक विधवाश्रम चलाती थीं। उनकी बहनके असामयिक स्वर्गवासके साथ ही विधवाश्रम भी समाप्त हो गया। एक और टूटी-फूटी इमारत मुझे दिखाई गई जिसमें गरीबोंके रहनेके लिए कोठरियाँ बनी हई थीं। आसपासका सारा वातावरण इस परोपकारी कुटुम्बकी विस्मयजनक उदारताके अनुरूप था। ऐसी अवस्थामें मेरा यह सौभाग्य था जो देशबन्धके चित्रोंका तथा देशबन्धु एवेन्यू और देशबन्धु रोडके नामपट्टोंका अनावरण मेरे हाथों कराया गया।

हो और मुंडा तथा अन्य आदिम जातियोंके प्रदेशमें अपनी यात्रा तथा उन प्रदेशोंमें जो सुधार-कार्य चुपचाप हो रहा है, उसके सम्बन्धमें मुझे जरूर लिखना है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २४-९-१९२५