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१२४. ब्रिटिश सिंहका क्या?

सुदूर कैलिफोर्नियासे एक पत्र मिला है जो नीचे दिया जाता है :

इसके साथ एक कतरन संलग्न है। कृपया इस कतरनको पहले पढ़ें। केनेडी अपने घरमें बैठा हुआ था। संयोगसे उसने सामने मैदानपर नजर डाली जहाँ उसकी चार वर्षीय पौत्री खेल रही थी। उसने देखा कि एक जंगली शेर दबे पैर बच्चीकी ओर बढ़ रहा है। केनेडीने लपक कर अपनी रायफल उठाई। शेर बच्चीपर झपटने ही वाला था कि उसने खिड़की से निशाना ताक कर गोली मार दी। गोली शेरके कलेजेको पार कर गई।

अब उस बच्चीके पितामहकी इस कार्रवाईपर अपनी राय और नीचे लिखे सवालोंका जवाब दीजिए :

क्या उसका शेरको मारना ठीक था? क्या केनेडीको चाहिए था कि वह अहिंसाका पालन करता और शेरको बच्चीको खा जाने देता? क्या उसका सिंहको आत्मासे अपील करना और इस तरह अपनी बच्चीकी जानको खतरेमें डालना ज्यादा अच्छा होता? क्या केनेडोके लिए अपनी बच्चीको बचानेकी खातिर शेरसे दयाको प्रार्थना करना सम्भव था? क्या आप ब्रिटिश सिंहको आत्मासे इसी तरह प्रार्थना करते रहेंगे और उसे लाखों भारतवासियोंको फाड़ खाने देंगे?

पहले प्रश्नका मेरा उत्तर यह है कि केनेडीका सिंहको मार डालना ठीक था। दूसरे सवालोंको पूछकर लेखकने अहिंसा तथा उसकी कार्य-प्रणालीके विषयमें अपने अज्ञानका परिचय दिया है। अहिंसा मानसिक या बौद्धिक वृत्ति नहीं है बल्कि हृदयका, आत्माका गुण है। यदि केनेडीको सिंहका भय न होता—ध्यान रहे कि निर्भयता अहिंसाकी पहली और अनिवार्य शर्त है—यदि उसके हृदयको इस सत्यकी प्रतीति होती कि सिंहमें भी वैसी ही आत्मा है जैसी कि खुद उसमें है तो वह बन्दूक लेनेके लिए न दौड़ता और इस संशयास्पद संयोगपर निर्भर न करता कि जबतक वह बन्दूक लेकर आता है और अचक निशाना मारता है तबतक सिंह इन्तजार करेगा; बल्कि इस दृढ़ विश्वासके साथ कि वह शेरकी अन्तरात्मासे अपील करके अपनी बच्चीको बचा सकता है, वह सीधा सिंहकी ओर दौड़कर उसके गलेमें बाँह डाल देता। यह बिलकुल सच है कि अहिंसाकी इस स्थितिपर पहुँचना बहुत ही थोड़े लोगोंके लिए शक्य है। इसलिए आम तौरपर मानवजाति हमेशा ही सिंहों और बाघोंको मार कर अपने बच्चों और मवेशियोंकी रक्षा करती रहेगी। परन्तु इससे मूल सिद्धान्तमें कोई बाधा नहीं पड़ती। हिन्दुस्तानमें ऐसे सच्चे साधु-संतोंकी बात कोई नई नहीं है जो जंगलोंमें निडर भावसे जंगली जानवरोंके बीच रहते है और दोनोंमें से कोई किसीको हानि