पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/२७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

१३५. विविध प्रश्न

कच्छके एक शिक्षकने मुझसे कुछ प्रश्न पूछे हैं। उनके जवाब सर्वसाधारणके सामने रखने योग्य है अतएव में यहाँ उन प्रश्नोंके साथ-साथ उनके जवाब दे रहा हूँ।

१. में विद्यालयका शिक्षक हूँ। मुझमें जैसा चाहिए वैसा चारित्र्य, सत्य और ब्रह्मचर्य नहीं है। मैं उसे प्राप्त करने के लिए भगीरथ प्रयत्न कर रहा हूँ। मेरे पिताके सिरपर कर्ज है। ऐसी हालतमें क्या आप मुझे शिक्षकके पदसे इस्तीफा देने की सलाह देते हैं?

वांछनीय चारित्र्यके अभावमें इस्तीफा देनेका विचार सुन्दर है, यह मैं स्वीकार करता हूँ। फिर भी इसमें विवेकसे काम लेनेकी आवश्यकता है। यदि कार्य करते-करते दोष कम होते जायें तो इस्तीफा देने की कोई आवश्यकता नहीं। कोई भी मनुष्य पूर्ण नहीं होता। शिक्षक वर्गमें चारित्र्यकी बहुलता होती है, ऐसा तो देखने में नहीं आता। अपने कार्यमें जाग्रत रहने और यथाशक्ति उद्यम करते रहने से मनुष्य सन्तोष पा सकता है, पर इस सम्बन्धमें सबोंके लिए एक ही तरीका काम नहीं दे सकता। सबको अपने-अपने लिए सोच लेना चाहिए।

पिताके कर्जका प्रश्न सहल है। यदि कर्ज ठीक कामोंके लिए लिया गया था तो वह अदा किया जाना चाहिए। यदि उस कर्जका शिक्षककी वृत्ति द्वारा चुकाया जाना सम्भव न हो तो कोई अन्य नौकरी या धन्धा ढूँढ लेना चाहिए।

२. प्रति सप्ताह एक दिन मौनव्रतका पालन करने में नैतिकके अतिरिक्त कोई आरोग्य सम्बन्धी लाभ भी है?

सामान्यतया मौनसे स्वास्थ्यको भी लाभ पहुँचता है ऐसा कहा जा सकता है। परन्तु जो मनष्य मौनमें आनन्द प्राप्त न कर सकता हो, इससे उसके स्वास्थ्यमें लाभ न होगा।

३. आपने अपनी 'आरोग्य विषे सामान्य ज्ञान' नामक पुस्तकमें बतलाया है कि दूध और नमक ये दोनों वस्तुएँ त्याज्य है। दूध अहिंसक दृष्टि से और नमक आरोग्यकी दष्टिसे। यदि दूध त्याज्य है तो उससे उत्पन्न होनेवाले घी छाछ आदि पदार्थ भी त्याज्य होने चाहिए। इन पदार्थोके विषयमें आपकी रायमें अब कोई परिवर्तन हो गया है या वह पूर्ववत ही कायम है?

इस विषयमें मेरे विचारोंमें फेरफार नहीं हुआ है; बरतावमें अवश्य हुआ है। मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि जो दूधके बिना रह सकता है, उसे आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है। दूध और उससे उत्पन्न हुए पदार्थोंका त्याग ब्रह्मचर्यके पालनमें बड़ा सहायक होता है। जो दूधका सेवन नहीं करता, वह छाछ और घीसे भी परहेज रखे तो अच्छा है। जीवनके मोहके वशीभूत होकर अथवा आवश्यक होनेके कारण मैने