पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/२८४

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१३८. पत्र : वा॰ गो॰ देसाईको

आषाढ सुदी १० [२७ सितम्बर, १९२५][१]

भाईश्री वालजी,

तुम्हारे दोनों पत्र मिले। तुम डा॰ मेहतावाले बंगलेमें आकर ठहर जाना। उसके जितने हिस्सेका इस्तेमाल करना जरूरी हो उतनेका ही इस्तेमाल करना, जिससे कि बाकीका हिस्सा यदि कोई दूसरा आये तो उसके लिए खाली रखा जा सके। इस बारेमें चि॰ छगनलाल और मगनलालसे मिलकर निश्चय कर लेना। गोरक्षाके सम्बन्धमें साहित्य इकट्ठा करना शुरू कर देना। उसपर विचार करना : गोरक्षाकी [भावनाकी] उत्पत्ति कैसे हुई इसकी खोज करना। इसमें किसीकी मददकी जरूरत पड़े तो लेना। डंरियों और चर्मशोधनालयोंसे सम्बन्धित साहित्य भी इकट्ठा करना। गोरक्षा [संघ] में[२] तो कातनेवाले सदस्य ही बनोगे न? उस पत्रिकाको[३] मैं अनिच्छासे 'यंग इंडिया' के परिशिष्टके रूपमें लेता हूँ। [मैंने ऐसा क्यों किया इन] कारणोंको तुम 'यंग इंडिया' में देख जाना।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गुजराती पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ७७४१) की फोटो-नकलसे।

 

१३९. पत्र: वसुमती पण्डितको

आश्विन सुदी १० [२७ सितम्बर, १९२५][४]

चि॰ वसुमती,

तुम्हारा पत्र मिल गया है। अब स्थिर होना जरूरी है। स्थिर अर्थात् स्थिर चित्त। तुम्हें अभीतक किस बातकी चिन्ता सताती है, यह हो सके तो मुझे ठीक

 
  1. डाककी मुहरसे।
  2. अखिल भारतीय गोरक्षा संघ।
  3. घाटकोपर मानव दया संघ द्वारा प्रकाशित गोरक्षा परिशिष्टांक, जिसका प्रकाशन गांधीजी, जो उस समय अ॰ भा॰ गोरक्षा संघ के अध्यक्ष थे, की अनुमतिके बिना इस आशापर कि उनकी अनुमति मिल जायेगी, किया गया था। परिशिष्टांकके सम्बन्धमें गांधीजीके विचारों के लिए देखिए 'टिप्पणियाँ', १–१०–१९२५ का उपशीर्षक "गोरक्षा परिशिष्टांक"।
  4. पत्र में डाककी मुहरपर भागलपुर १–१०–१९२५ है। आश्विन सुदी १०, ता॰ २७–९–१९२५ को पड़ी थी।