[पुनश्च :]
मेजबानोंको खुश करनेके लिए भी बढ़िया खाना न खाओगे, ऐसा निश्चित वचन तुम्हें देना होगा।
मो॰
[पुनश्च :]
साँपके मेरे ऊपर रेंगनेका तुमने जो उल्लेख किया है, वह क्रिस्टोदासने मुझे दिखाया है। काश! तुमने जो-कुछ लिखा है, वह सच होता। ये महोदय मेरे बदनपरसे रेंगे तो जरूर थे, परन्तु उस समय जब मैं प्रार्थनाके बाद लेटा हुआ लोगोंसे बातें कर रहा था। थोड़ा-सा हंगामा भी हुआ। मैं चुपचाप लेटा रहा और एक मित्रने मेरी चादरको, जिसपर वह रेंग आया था मेरे बदनपरसे हटा दिया। मुझे लगता है कि तुम्हें इस सम्बन्धमें एक संशोधन भेज देना चाहिए।
अंग्रेजी पत्र (जी॰ एन॰ २६४०) की फोटो-नकलसे।
१५१. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी
सत्ताको स्वराज्यवादियोंके हाथोंमें सौंपने का जो सिलसिला प्रारम्भ हुआ था, वह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीने अपनी पटनाकी बैठकमें पूरा कर दिया। प्रस्तावों[१] पर बहुत गम्भीरतापूर्वक विचार किया गया और कुल मिलाकर संयम भी पूरा-पूरा बरता गया। प्रस्तावके भिन्न-भिन्न भागोंका समर्थन उतने बड़े बहुमतसे नहीं हुआ जितनेकी मैंने उम्मीद की थी। यहाँ सवाल एक संस्थाकी शाखा द्वारा अपने मूल संगठनके विधानमें परिवर्तन करनेका था, इसलिए मैं चाहता भी था कि प्रस्तावोंका समर्थन बहुत बड़े बहुमतसे हो; लेकिन वैसा नहीं हुआ। फिर भी मुझे लगता है कि मैंने उन प्रस्तावोंके उपस्थित किये जानेकी अनुमति देकर देशके हितके अनुकूल ही काम किया है। मैं पहले ही यह बात कबूल कर चुका हूँ कि विधानमें परिवर्तन करना अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके सामान्य अधिकार-क्षेत्रके बाहर है। और यह एक किस्मकी बगावत है। परन्तु मैं मानता हूँ कि अपनी ख्याति और प्रतिष्ठाका खयाल रखनेवाली हर संस्थाका कर्तव्य है कि यदि उसे पूरा विश्वास हो कि स्वयं संस्थाके अस्तित्व या हित साधनके लिए ऐसी बगावत जरूरी है तो वह ऐसे साहसके साथ ऐसी स्थितिका स्वागत करे। इसी कारण मैंने पहले यह तय करनेके लिए समितिको बैठक बुलाई कि क्या ऐसा कठिन प्रसंग आ गया है जिससे कि कांग्रेसके अधिवेशनका इन्तजार किये बिना संविधानमें परिवर्तन करना उचित समझा जाये। शीघ्र परिवर्तन करनेके पक्षमें भारी बहुमत था। इसलिए स्वयं उस प्रस्तावको भी उतना ही बड़ा बहुमत मिले, इसका आग्रह मैने नहीं रखा। अब अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके कार्यको स्वीकार करना कांग्रेसकी
- ↑ देखिए परिशिष्ट २।