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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पापी हूँ, इसका वर्णन करनेके लिए तुलसीदासको भाषामें प्राप्त सारे विशेषण हलके मालूम होते थे। संसार उन्हें भी सन्त समझता है। और अन्तमें पता नहीं, आपको मालूम है या नहीं कि ईसाई साहित्य समिति (क्रिश्चियन लिटरेचर सोसाइटी) द्वारा श्री मर्डक और ऐसे ही अन्य लोगोंकी नितान्त असन्तुलित विचारों तथा खयालोंसे भरी पुस्तक-पुस्तिकाओंकी बिक्री अब भी जारी है। यदि आप केवल देशी भाषाओंके उस ईसाई साहित्यके बारेमें जान लें, जो हजारों पर्यों और पुस्तिकाओंके रूपमें बाँटा जा रहा है, तो आप शायद समझ जायेंगे कि मेरे कथनमें कितना सार है। इन बातोंसे मुझे चोट केवल इसलिए पहुँचती है कि मैं जानता हूँ कि ये जिन ईसामसीहके नामपर कही और लिखी जाती हैं, उन्हींके उपदेशोंको झुठलाती है। इस सबसे मुझे इसलिए भी दुःख होता है कि भारतीय ईसाइयोंको ऐसे ही अज्ञानपूर्ण उपदेश मिलते रहते हैं और वे अपनी सरलताके कारण इन्हें ही ईश्वरीय सत्यके रूपमें आत्मसात् कर लेते हैं, और फिर उन लोगोंसे घृणा करने लगते है जो कभी उनके मित्र, साथी और सम्बन्धी थे। आपको शायद मालूम नहीं है कि जिस मुक्त भावसे मैं समाजके निचले तबकेके हिन्दुओं और मुसलमानोंसे मिलता-जुलता हूँ उसी भावसे इस तबकेके भारतीय ईसाइयोंसे भी मिलता-जुलता हूँ। मैं ये बातें तर्कके रूपमें नहीं कह रहा है, बल्कि आपको यह बतानेको गरजसे कह रहा हूँ कि मैंने उस बैठकमें जो-कुछ कहा था, वह पूर्ण रूपसे वस्तु-स्थितिकी जानकारी और प्रेमके आधारपर कहा था। मैं वहाँ सेवाभावसे प्रेरित होकर गया था और यह पत्र भी मैने उसी भावसे लिखा है। आपके सदाशयतापूर्ण पत्रकी सबसे बड़ी कद्र में इसी तरह कर सकता हूँ। कृपया उन मित्रोंको भी मेरी याद दिलायें जो आपके साथ थे।

मैंने यह पत्र बोलकर लिखाना समाप्त किया ही था कि एक दूसरे ईसाई भाईका पत्र पढ़ा। ये भाई भारतीय है। यह पत्र बहुत लम्बा है। किन्तु यहाँ आपके पढ़नेके लिए मैं उसके दो अंश उद्धृत करनेका लोभ संवरण नहीं कर सकता। वे अंश इस प्रकार हैं :

(१) कल कलकत्तमें हुए ईसाई धर्म-प्रचारकोंके सम्मेलनमें आपका भाषण सुनकर मुझे बड़ी निराशा हुई। मैं हमेशा यही मानता रहा हूँ कि आप ईसा मसीहके सच्चे अनयायी हैं, किन्त कल रात आपने जो-कुछ कहा, उससे मेरा हृदय बिलकुल टूट गया है। जब आप ऐसा कहते हैं कि ईसा मसीह केवल एक महान् शिक्षक थे और कुछ नहीं, तब समझमें नहीं आता कि मैं आपको "सत्यका अन्वेषक" कैसे मानूं। यह कितने खेदकी बात है कि आप-जैसा श्रेष्ठ और सुसंस्कृत व्यक्ति कहे कि ईसा मसीह मात्र एक शिक्षक थे। उस हालतमें तो मुझे कहना होगा कि या तो आपने ईसा मसीहके उदात्त जीवनका अध्ययिन उसका मर्म जानने की दृष्टिसे और प्रार्थनापूर्वक नहीं किया है या फिर गम्भीर पूर्वग्रहके साथ किया है।
(२) ईसाई धर्मेतर धर्मोके ऐसे कुछ प्रमुख व्यक्तियोंने, जिन्हें सत्यान्वेषी समझा जाता है, यह कहा है कि चैतन्य, बुद्ध, मुहम्मद, कृष्ण और ईसा ये