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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करनेको कहा जाता है तब अपने मनकी बात साफ-साफ कह देनेके लिए वे मुझे क्षमा करेंगे।


अब कृष्णकी बात लें। गुरुओंके विषयमें मैंने उनको ऐसे ऐतिहासिक व्यक्ति मानकर विचार किया है, जिनके अस्तित्वके सम्बन्धमें हमें विश्वसनीय प्रमाण प्राप्त है। लेकिन, मुझे नहीं मालूम कि 'महाभारत' में जिस कृष्णके चरित्रका वर्णन है, वह इस संसारमें कभी था भी या नहीं। मेरे कृष्णका किसी भी ऐतिहासिक व्यक्तिसे कोई सम्बन्ध नहीं है। उस कृष्णके सामने मेरा मस्तक कभी भी नत नहीं हो सकता जो अपने अहंपर प्रहार होनेसे दूसरोंको मारता है, या जिस कृष्णका चित्रण गैर-हिन्दू लोग एक लम्पट युवकके रूपमें करते हैं। अपनी कल्पनाके कृष्णको मैं ईश्वरका पूर्ण अवतार मानता हूँ। वह हर दृष्टिसे निष्कलंक है; वह 'गीता' का जन्मदाता और लाखों-करोड़ों लोगोंके लिए प्रेरणाका स्रोत है। किन्तु, यदि मेरे सामने यह सिद्ध कर दिया जाये कि 'महाभारत' भी आधुनिक इतिहास-ग्रन्थोंके ही अर्थमें एक इतिहास-ग्रन्थ है, उसका एक-एक शब्द प्रामाणिक है और 'महाभारत' के कृष्णके विषयमें जो-जो कार्य करनेकी बात कही जाती है, उनमें से कुछ नीति-विरुद्ध कार्य भी उन्होंने सचमुच किये थे तो हिन्दू-धर्मसे मेरा बहिष्कार ही क्यों न कर दिया जाये, मैं उस कृष्णको कभी ईश्वरका अवतार नहीं मान सकता। किन्तु मेरी दृष्टि में 'महाभारत' एक धार्मिक ग्रन्थ है, यह मुख्यतः अन्योक्ति शैलीमें लिखा गया है और महाभारतकारका मंशा कभी भी इतिहास-ग्रन्थ लिखने का नहीं था। इसमें हमारे भीतर चलनेवाले अच्छाई-बुराईके चिरन्तन संघर्षका वर्णन है और इसे इतनी सजीव शैलीमें प्रस्तुत किया गया है कि कुछ देरके लिए हम ऐसा समझने लग जाते हैं कि इसमें जिन कार्योंका वर्णन किया गया है, वे कार्य सचमुच लोगोंने किये भी थे। इसके अलावा, अभी हमें 'महाभारत' का जो पाठ उपलब्ध है, उसे मैं मूलकी अविकल प्रति नहीं मानता। इसके विपरीत, मैं तो यह मानता हूँ कि इसमें कई बार परिवर्तन किये गये हैं।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १–१०–१९२५