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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


दूसरे जहाँ हिन्दी नहीं बोली जाती वहाँ उसका प्रचार करें। यह कार्य दक्षिण प्रान्तोंमें सुव्यवस्थित रूपसे चल रहा है, ऐसी मेरी मान्यता है। लेकिन बंगाल-जैसे प्रदेशमें कुछ भी नहीं होता, यदि यह कहें तो वह ठीक ही होगा। वहाँ अच्छी हिन्दी जाननेवाले अध्यापकोंको रखा जाये और निःशुल्क वर्गोंकी व्यवस्था की जाये तथा जिस तरह दक्षिण प्रान्तोंमें हुआ है उसी तरह बंगलाके माध्यमसे हिन्दी सीखने योग्य आसान पुस्तकें प्रकाशित की जायें।

तीसरे देवनागरी लिपिका प्रचार किया जाये। यदि अपनी भाषाके उपरान्त लोग देवनागरी लिपि भी जान लें तो हिन्दी समझना और एक-दूसरे प्रान्तकी भाषाएँ जो संस्कृतसे उद्भूत हुई हैं, उनको समझना अत्यन्त सहल हो जाये। इस दृष्टिसे बंगला भाषाके अच्छे से-अच्छे ग्रन्थ देवनागरी लिपिमें और हिन्दीमें शब्दार्थों सहित प्रकाशित किये जायें; यह [हिन्दी सीखनेका] आसानसे-आसान रास्ता है। इस कार्यको यदि मारवाड़ी, गुजराती और अन्य धनिक-वर्ग तथा साक्षर-वर्गके लोग अपने हाथ में ले लें तो थोड़े समयमें बहुत सुन्दर कार्य हो सकता है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १८–१०–१९२५
 

१९४. भाषण : उ॰ प्र॰ हिन्दी साहित्य सम्मेलनमें[१]

१८ अक्तूबर, १९२५

अपने स्वागतमें भेंट किये गये अभिनन्दन-पत्रका उत्तर देते हुए श्री गांधीने कहा कि हिन्दो ही भारतकी राष्ट्रभाषा हो सकती है। मुझे इस बातसे बड़ी प्रसन्नता है कि मद्रासमें हिन्दीको लोकप्रिय बनानेके लिए काम किया जा रहा है, लेकिन खेद है कि बंगाल और अन्य स्थानों में कोई काम नहीं किया जा रहा है। अभिनन्दनपत्रको भाषाके विषय में बोलते हुए गांधीजोने कहा कि जिस प्रकार कल लखनऊ नगरपालिका द्वारा भेंट किये गये अभिनन्दन-पत्रोंमें फारसी शब्दोंकी भरमार थी, उसी प्रकार इसमें संस्कृत शब्दोंका बाहुल्य है। ऐसी भाषा समझना मेरे लिए मुश्किल है। किसी भाषाको राष्ट्रभाषा पदपर आरूढ़ होनेके लिए ऐसा होना चाहिए जिससे उसको सर्वसाधारण आसानोसे समझ सकें।

[अंग्रेजीसे]
लीडर, २०-१०-१९२५
 
  1. यह सभा सीतापुरमें पण्डित रामजीलाल शर्माकी अध्यक्षतामें राजा स्कूलमें हुई थी।