जैसे बड़े शहरोंका सुधार करने में बड़ी ही मुश्किलें पेश आती हैं। लेकिन मधुपुरजैसी छोटी जगहों में नगरपालिकाकी आमदनी बहुत ही थोड़ी होते हुए भी उन्हें अपनी-अपनी हदमें आनेवाले क्षेत्रको साफ-सुथरा और रोगमुक्त रखने में मुश्किलोंका सामना भी नहीं करना पड़ता। मैं मधुपुरकी राष्ट्रीय पाठशालामें भी गया। प्रधानाध्यापकने अपने अभिनन्दन-पत्रमें पाठशालाके भविष्यका बड़ा ही अन्धकारमय चित्र खींचा था। उन्होंने कहा कि लड़कोंकी संख्या घट रही है और लोगोंकी तरफसे आर्थिक सहायता भी कम होती जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ माँ-बापोंने अपने बच्चोंको सिर्फ इसलिए पाठशालासे हटा लिया है कि पाठशालामें हाथ-कताईको अनिवार्य कर दिया गया है। उस अभिनन्दन-पत्रमें मुझसे इन मुश्किलोंसे बाहर निकलनेका उपाय बतानेको कहा गया था। मैंने उन्हें जवाब दिया कि यदि शिक्षकोंको अपने उद्देश्यमें श्रद्धा है तो उन्हें निराश नहीं होना चाहिए। सभी नई संस्थाओंको अच्छे-बुरे दिन देखने पड़ते हैं। यह स्वाभाविक ही है। उनकी ये कठिनाइयाँ उनका परीक्षा-काल सूचित करती हैं। दृढ़ विश्वास वही है, जो तूफानोंमें भी अडिग रहे। यदि शिक्षकोको पूरा विश्वास है कि पाठशालाके जरिये उन्हें आसपासके लोगोंतक एक सन्देश पहुँचाना है तो उन्हें बड़ेसे-बड़ा त्याग करनेके लिए तैयार होना चाहिए। फिर, यदि उनको इस बातका यकीन हो जाये कि उन्होंने अपनी पाठशालाको अच्छा बनानेकी दिशामें जितना कर सकते थे वह सब-कुछ किया है और माँ-बाप और लड़के उनकी त्रुटियोंके कारण पाठशालासे विमुख नहीं हो रहे है किन्तु जिस सिद्धान्तके लिए वे प्रयत्न कर रहे हैं वही उन्हें ठीक नहीं जँच रहा है, तो फिर उनकी पाठशालामें एक लड़का हो या १०० लड़के हों, उसकी कुछ भी परवाह नहीं करनी चाहिए। यदि उनके कताईमें श्रद्धा रखनेके कारण माँ-बाप अपने बच्चोंको पाठशालासे निकाल लेते हैं तो उन्हें इसकी कोई चिन्ता नहीं करनी चाहिए; किन्तु यदि उन्होंने कताईको अपने आन्तरिक विश्वासके कारण नहीं, सिर्फ इसीलिए रखा है कि वह एक रिवाज हो गया है, या कांग्रेसके प्रस्तावमें उसका होना आवश्यक बतलाया गया है, तो उन्हें लोगोंका सद्भाव कायम रखनेके लिए कताईको निकाल देने में जरा भी नहीं हिचकिचाना चाहिए। अब समय आ गया है कि राष्ट्रीय शिक्षकगण स्वयं निर्णय लें। क्योंकि जब ये सुधार किये जाते है, तो उन सबका या एकाधका विरोध करनेवाले कुछ लोग तो हमेशा ही निकल आते हैं और मात्र वे ही शिक्षक जिन्हें अपने में और अपने उद्देश्यमें श्रद्धा है, जिन सुधारोंको आवश्यक समझते हैं, उनके विरोधका सामना कर सकते हैं और शायद यही उनके नये प्रयासको उचित प्रमाणित करता है।
फुटकर बातें
मधुपुरसे हम लोग पूर्णिया जिलेकी ओर रवाना हुए अर्थात् एक नये वातावरण और नये प्रदेशकी ओर चले। पूर्णिया जिला गंगाके उत्तरी किनारेपर उत्तर-पूर्वकी ओर है। सारा ही जिला हिमालयकी तराईमें बसा है। यहाँकी आबोहवा और यहाँके निवासी करीब-करीब चम्पारनके जैसे हैं। हम लोग सकीरीगली घाटसे नावमें मनियारी घाट