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टिप्पणियाँ

करनेसे ही प्राप्त होता है। जीव-मात्रके साथ ऐक्यका अर्थ है उनके दुखोंको समझकर स्वयं दुखी होना और उनके दुःखका निवारण करना।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २५–१०–१९२५
 

२१२. टिप्पणियाँ
चरखा संघमें अपने नाम दर्ज करवाएँ

जो लोग कांग्रेसमें स्वेच्छासे अपना कता हुआ सूत दिया करते थे उन्हें चाहिए कि अब वे अपने नाम चरखा संघको भेज दें। इस वर्गके सब लोग अपनी इच्छानुसार हर महीने एक हजार गज सूत अथवा वर्षभरका १२,००० गज सूत एक ही बारमें भेज सकते है। डाक खर्च एक बड़ा खर्च है। उसमें जितनी बचत की जा सके, की जानी चाहिए। इसलिए सूतका एक बार में भेजा जाना ही अभीष्ट है। और अनेक लोगोंका सूत एक ही पार्सलमें इकट्ठा करके भेजा जाना भी अभीष्ट है। कुछ इसी विचारसे मुझे श्री दास्तानेने रास्तेमें पड़नेवाले भुसावल स्टेशनपर ५७ सदस्योंका सूत नाम-धाम सहित दिया। अब सभी स्थानोंसे सूत आना शुरू हो जाना चाहिए।

खादीका अर्थ

जिस तरह कितने ही लोग मोटे कपड़ेको, यद्यपि वह मिलका कता व बुना हो, खादी समझकर पहनते हैं उसी तरह कुछ अन्य लोग ऐसे भी दिखाई पड़ते हैं जो खादीको हाथसे कते सूतका मोटा व खुरदरा कपड़ा मानते हैं। यह बात तथ्यपूर्ण नहीं है। हाथकते सूतका हाथसे बुना हुआ कपड़ा, फिर चाहे वह कितना ही महीन क्यों न हो, खादी है। खादी रुई, रेशम अथवा ऊनकी हो सकती है। जिसे जैसी खादी अनुकूल पड़े, वैसी पहने। आन्ध्रकी खादी काफी महीन होती है। आसाममें थोड़ी रेशमी खादी मिलती है और काठियावाड़में ऊनकी—मतलब यह कि खादीकी विशेषता और खासियत उसके हायसे कते और हाथसे बुने होनेमें है। सामान्य रूपसे हाथकी खादी मोटी व खुरदरी देखने में आती है। इससे कुछ लोग खादीके बारेमें से यही मानते हैं कि वह ऐसी ही होती है। ६० से ८० अंकके सूतकी महीन खादी भी बनती है तथापि जिन्होंने मोटी खादीका उपयोग किया है, वे जानते हैं कि खुरदरी मोटी खादीका स्पर्श एक तो शरीरको सुखकर लगता है, दूसरे खुरदरी होनेसे वह त्वचाकी रक्षा भी अधिक करती है।

कानपुरका अधिवेशन

कानपुर अधिवेशनके[१] लिए अब बहुत ज्यादा दिन शेष नहीं है। स्वागत समितिके सम्मुख अप्रत्याशित कठिनाइयाँ आ गई थीं। जमीन मिलने में ही समितिको जो

 
  1. कानपुर कांग्रेस दिसम्बर १९२५ के अन्तिम सप्ताहमें हुई थी।

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