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२१४. पत्र : फूलचन्द शाहको

कोटडा, कच्छ
रविवार
[२५ अक्तूबर, १९२५][१]

भाईश्री ५ फूलचन्द,

तुम्हारा पत्र मिला। १००० रुपये तो मिल ही गये होंगे। जबतक गोंडलकी[२] जनता स्वयं कुछ नहीं करती तबतक तुम और मैं भी उसके लिए अधिक कुछ नहीं कर सकते।

एक चरित्रहीन परिवारकी दूसरा कोई क्या मदद कर सकता है? भाई शिवजी[३] के सम्बन्ध में कुछ हो सकता है, उसका कारण यह है कि वे जिन प्रवृत्तियोंसे सम्बद्ध हैं उनके प्रबन्धमें हमारा हाथ है। [परन्तु] वैसी संस्था चलानेवाले अन्य लोगोंके बीच पड़नेका हमें अधिकार नहीं। हममें चरित्रविजयजीके मामले में हस्तक्षेप करनेकी शक्ति उतनी नहीं है।

हम संसारके काजी नहीं बन सकते। इसलिए मैं चाहता हूँ कि तुम गोंडल अथवा ऐसे राज्योंके बारेमें फिक्र न करो। संसारको सुधारनेका सबसे अच्छा रास्ता यह है कि हम खुद अपने में सुधार करें। ठीक यही है कि मनुष्य अनायास प्राप्त धर्मको स्वीकार करे। यदि मेरा यह कहना ठीक हो तो फिर मैं समझता हूँ कि हमें गोंडल के बारेमें धीरज रखना चाहिए। इस बारेमें तुम मुझसे जब मिलोगे तब अधिक चर्चा करेंगे।

निज इसके अलावा तुम्हारे पत्रसे ऐसा अनुमान होता है कि गोंडलके दोषोंके बारेमें मेरे पास बहुत ज्यादा प्रमाण इकट्ठे हो गये हैं, तुम ऐसा मानते हो।

ऐसी तो कोई बात नहीं है। मेरे पास कोई भी प्रमाण नहीं है। मैंने तो समितिके[४] आगे यह कहा था कि मैं गोंडलके शासकसे मिलनेके लिए जितने प्रयत्न कर सकता था सो कर चुका हूँ, लेकिन मैं उसमें सफल नहीं हुआ हूँ। इस समय मैं तात्कालिक उपाय एक ही जानता हूँ और वह यह है कि जो सेवक हैं, उन्हें अपनी शक्ति बढ़ानी चाहिए। इससे भविष्य सुधरेगा।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ २८२८) की फोटो-नकलसे।
सौजन्य : शारदाबहन फू॰ शाह
 
  1. इस तरीखको गांधीजी कोटडामें थे।
  2. काठियावाड़की एक तत्कालीन देशी रियासत।
  3. मढ्ढा काठियावाड़में, तीन आश्रमोंके संचालक।
  4. सम्भवतः काठियावाड़ राजनितिक परिषद्की कार्यकारिणी समिति।