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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मुझसे चर्चा करना चाहती है। सीतापुरमें मैंने हिन्दू-सभाका अभिनन्दन-पत्र बड़ी खुशीसे स्वीकार किया था।

अमीनाबादके आरती-नमाजके प्रश्नको तलवार एक सालसे ज्यादा अरसेसे लटक रही है। यदि दोनों दल आपके निर्णयको कबूल करनेका वचन दें, तो क्या आप उस प्रश्नपर अपना निर्णय जाहिर करनेकी कृपा करेंगे?

मैंने अपने संयक्त-प्रान्तके यात्रा-विवरणमें इस मामलेकी चर्चा की है।[१]

७. एक हिन्दूकी हैसियतसे इस मामलेमें आपकी निष्पक्ष राय क्या है?

मुझे सारी बातें मालूम नहीं है इसलिए मैं कोई राय नहीं दे सकता। यदि मैने पहले से ही अपनी राय कायम कर ली होती तो दोनों दल भले ही मेरा निर्णय कबूल करनेको राजी होते, तो भी उनकी मध्यस्थताके लिए मैं कभी भी राजी नहीं हो सकता था।

८. मोहर्रमके दिनों में या किसी भी अवसरपर मुसलमानोंके बाजा बजानेका हिन्दू लोग तो कभी विरोध नहीं करते हैं। तो फिर हिन्दुओंके बाजोंका मुसलमानोंको क्यों विरोध करना चाहिए? क्या हिन्दुओंको हर उपायसे अपने धार्मिक हकोंकी रक्षा करनेका हक नहीं है?

इस प्रश्नमें दो बातें ऐसी है जिनके बारेमें असल तथ्य मुझे मालूम नहीं है। रहा प्रश्नका तीसरा हिस्सा, तो हिन्दुओंको अपने धार्मिक हकोंकी हर उपायोंसे नहीं, बल्कि हर ईमानदारीयुक्त उपायसे, और मेरी रायमें प्रत्येक अहिंसात्मक उपायसे ही उन हकोंकी रक्षा करने का अधिकार है।

९. पटनामें दो अपहृत लड़कियाँ आपके सामने लाई गई थीं। सारे हिन्दुस्तानमें अपहरण करनेकी जो बीमारी फैल रही है, उसके खिलाफ एक हिन्दूकी हैसियतसे आप हिन्दुओंको क्या करने की सलाह देंगे?

मैने गत सप्ताहमें इस नाजुक प्रश्नकी चर्चा की है।[२]

१०. क्या हिन्दुओंका मुसलमानोंके खिलाफ कोई आक्रमणात्मक कार्य करनेके लिए नहीं, लेकिन अपने धार्मिक हकोंकी रक्षा करनेके लिए और अपहरण आदि जैसी बुराइयोंको दूर करनेके लिए और हिन्दू जातिको शारीरिक, सामाजिक, नैतिक और भौतिक उन्नतिके लिए अपना संगठन करना उचित नहीं है?

मैं नहीं समझता कि इस प्रश्नमें जिस प्रकारके संगठनकी बात कही गई है वैसे संगठनका कोई भी शख्स विरोध कर सकता है। मैं तो निश्चय ही विरोध नहीं करता।

११. मौलाना शौकत अलीने आपके जरिये बिहार खिलाफत सम्मेलनको एक सन्देश भेजा था। यदि लाला लाजपतराय और पण्डित मालवीयजी किसी हिन्दू-

 
  1. देखिए अगला शीर्षक।
  2. देखिए "शाश्वत समस्या", २२–१०–१९२५।