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२२४. कुछ शिकायतें और सुझाव

मेरे पास एक लम्बा पत्र पड़ा हुआ है, जिसमें बहुत सारी शिकायतें और सुझाव दिये गये हैं। पत्र एक स्वयंसेवकका है। इस कारण मैं इसे प्रकाशित करनेकी जरूरत समझता हूँ। महत्त्वपूर्ण अंशोंको छोड़े बिना मैं उसे संक्षेपमें नीचे दे रहा हूँ।[१]

गुजरातमें चरखे नहीं चल सकते, यह मैं नहीं मानता। गुजरातके किसानोंके पास अन्य लोगोंके जितना नहीं तो भी थोड़ा-बहुत समय तो बचता ही है। उनके आलस्यको दूर कर उन्हें सात्विक उद्यम सिखाना हमारा कर्त्तव्य है। लेकिन अभी हम गाँवोंमें दृढ़ आसन जमाकर बैठें ही नहीं हैं। फिर भी मैं जानता हूँ कि फिलहाल उस ओर प्रवृत्ति है। इसमें सन्देह नहीं कि इस कार्यमें समय चाहिए। लेकिन यह भी सही है कि जबतक मेरे जैसा एक भी व्यक्ति अपना विश्वास अविचल रखेगा और उसके अनुरूप काम करेगा तबतक चरखका कभी नाश नहीं होगा। चरखके चारों ओर हम चाहे जितनी अन्य प्रवृत्तियोंकी रचना करें परन्तु चरखा आधार है, मध्यबिन्दु है, केन्द्र है।

गुजरातमें कुछ पैसा व्यर्थ ही खर्च हुआ है, यह मैं मानता हूँ। लेकिन वह अनिवार्य था। सब नौसिखिये थे, सबको एक बिलकुल नये क्षेत्रमें काम करना था। इस क्षेत्रमें हमारे पास किसीका अनुभव न था। अन्य प्रान्तोंके पास गुजरातका अनुभव था। क्या इतना ही पर्याप्त नहीं कि संचालक प्रामाणिक और त्यागी थे? यदि सभी गुजराती, जिनके साथ हमें काम पड़ा, व्यवहारकुशल और ईमानदार होते तो हमें एक दमड़ीका भी नुकसान न होता और यदि होता भी तो उतना ही जितना हमने सोच-समझकर होने दिया होता।

आश्रमोंके बारेमें किये गये आक्षेप यदि ब्यौरेवार होते तो उनकी जाँच हो सकती थी। सत्याग्रह आश्रमका[२] तो पत्रलेखक जिक्र ही नहीं करता। ऐसा क्यों? लाख रुपयेसे ऊपर खर्च तो उसीपर हुआ है। उसका हिसाब अथसे इतितक मौजूद है। और ऐसे अन्य आश्रमोंमें भी, जिनके साथ मेरा अथवा प्रान्तीय कमेटीका सम्बन्ध है, मैं कोई गलत खर्च हुआ नहीं जानता। अलबत्ता, अविचारके कारण कुछ खर्च हुए हैं। परन्तु जबतक हमें सम्पूर्ण रूपसे कुशल सेवक नहीं मिलते तबतक विचारदोषके फलस्वरूप होनेवाले खर्च तो होते ही रहेंगे। सत्याग्रह आश्रमकी नींव यदि मुझे आज रखनी हो तो आजतकके अनुभवके आधारपर मैं उसकी रचना अलग ढंगकी करना चाहूँगा। लेकिन जो हुआ है उसका मुझे बिलकुल भी पश्चात्ताप नहीं है। सर्वस्व अर्पण करने के बाद मनुष्य और क्या दे सकता है? सभी संस्थाओंका निरीक्षण एक ही नियम के अनुसार करना चाहिए। क्या संचालकोंने उन्हें अपना मानकर उनकी

 
  1. यहाँ नहीं दिया गया है।
  2. साबरमती आश्रम अहमदाबाद।