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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


मैं यह भी खूब जानता हूँ कि सत्याग्रहाश्रम सर्वाङ्ग पूर्ण नहीं है। यह आश्रम सब कुछ करने अथवा सबको सन्तुष्ट करनेका दावा कदापि नहीं करता। भिन्न स्वभाववाले लोगोंको जो ज्यादा अनुकूल सिद्ध हों ऐसी अनेक संस्थाओंकी स्थापना के लिए अवकाश हो सकता है, परन्तु उनका प्रणेता मैं नहीं हो सकता। वह कार्य दूसरोंका है। उन संस्थाओंमें भी यदि ऐसी कोई चीज हो जहाँ में उपयोगी हो सकता हूँ तो मैं उनकी उतनी सेवा अवश्य करूँगा। परन्तु प्रत्येक वस्तुका बोझ मुझपर नहीं डाला जा सकता। ऐसा करना मोह है। मेरी शक्तिकी सीमा है। यदि मैं इस सीमासे बाहर जाऊँ तो मेरा नाश हो जाये।

पत्र-लेखकने जिस त्रिविध कार्यका[१] सुझाव दिया है वह मेरे विचारानुसार तो हो रहा है। वह अभी ज्यादा सफल नहीं हआ है, कारण अभी इतने सेवक तैयार नहीं हुए हैं। यदि प्रत्येक सेवक और सेविका विश्वासपूर्वक अपने-अपने कार्योंमें लगे रहें तो सब-कुछ अपने-आप हो जायेगा।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १–११–१९२५
 

२२५. भाषण : मुन्द्रामें[२]

१ नवम्बर, १९२५

यह बात सच है, कच्छकी समस्याने समस्त हिन्दुस्तानको हिला दिया है, लेकिन मेरे लिये अन्यत्र कहीं भी ऐसे सम्बोधनके[३] उपयोगका अवसर उपस्थित नहीं हुआ, क्योंकि यहाँ इस प्रश्नने जो स्वरूप ग्रहण किया है वैसा किसी भी स्थानपर नहीं किया है। बादलोंका घिरना भूजसे आरम्भ हुआ था। मन्द्राके लोगोंको जब यह समाचार मिला तब उन्होंने तुरन्त ही स्वागत समितिके मन्त्रीको तार भेजा कि "कहीं आप [अस्पृश्यों और स्वर्णोंकी] खिचड़ी तो नहीं कर रहे हैं?" इस तरहका दोषारोपण वहीं किया जा सकता है जहाँ लोग मिथ्या वहमके शिकार होकर, एक गजको सौ गज मापते हैं। भुजमें जब शुरूमें इस बातपर झगड़ा हुआ तब मैंने भुजके लोगोंको उसका एक सीधा आसान-सा हल ढूँढ़ निकालनेपर बधाई दी थी, लेकिन उसके बाद अन्य स्थानोंपर लोगोंको बधाई देनेकी बात मेरे हृदयने स्वीकार नहीं की। भुजमें तो जो हुआ सो अनायास ही हो गया। लेकिन अनायास जो स्थिति उत्पन्न हुई यदि दिन-प्रतिदिन उसकी पुनरावृत्ति होने लगे और हम उसे स्थायी बना दें तो यह बधाई देनेकी बात न होकर दुःख प्रकट करनेकी बात हो जाती है। मैं तो जो सोचता

 
  1. ग्रामीणोंके साथ बड़े पैमाने पर सम्पर्क, समाज सेवाकी तालीम और खादीका प्रसार।
  2. महादेव देसाईके यात्रा विवरण से उद्धृत।
  3. भाषणका आरम्भ करते हुए गांधीजीने सभाको इस प्रकार सम्बोधित किया था : 'अन्तज्य भाईयों और बहनों, उनकेे प्रति सहानुभूति रखनेवाले सज्जनों तथा अन्य हिन्दू भाई-बहनों!'