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१०. भाषण : ईसाइयोंकी सभामें[१]

कलकत्ता
४ अगस्त, १९२५

सभापति महोदय और भाइयो,

महोदय, आपने अभी कहा कि केवल भारतीय ईसाइयोंकी सभामें भाषण देनेका शायद यह मेरा पहला अवसर है। यदि आपका मतलब यह हो कि अपने वर्तमान दौरेमें मुझे यह सौभाग्य पहली बार मिला है, तो आपने ठीक ही कहा। किन्तु यदि आपका मतलब यह हो या बोलते समय यह रहा हो कि मैं जबसे दक्षिण आफ्रिकासे लौट कर भारतमें आया हूँ, तबसे यह सौभाग्य पहली ही बार यहाँ प्राप्त हो रहा है तो मैं कहना चाहूँगा कि १९१५ में भी एक बार में केवल ईसाइयोंकी सभामें बोला था।[२] किन्तु भारतीय ईसाइयोंसे मेरा सम्बन्ध तो १८९३ से रहा है, उस वर्ष में दक्षिण आफ्रिका गया था; वहाँ मैंने भारतीय ईसाइयोंका एक विशाल समाज पाया। मुझे यह देखकर सुखद आश्चर्य हुआ कि उन तमाम ईसाई युवकों और युवतियोंकी अपने धर्ममें गहरी निष्ठाके साथ-साथ अपनी मातृभूमिके प्रति भी उनमें वैसी ही श्रद्धा थी और जब मुझे मालूम हुआ कि इनमें से अधिकांश नवयुवकों और नवयुवतियोंने भारतको कभी देखा भी नहीं है तब तो मुझे और भी अधिक प्रसन्नता हुई। उनमें से अधिकतर पैदा हुए थे; और कुछ मॉरिशसमें पैदा हुए थे; क्योंकि सबसे पहले मॉरिशससे ही स्वतन्त्र भारतीय प्रवासियोंका पहला जत्था दक्षिण आफ्रिका पहुंचा था। उनमें से अधिकतर गिरमिटिया माता-पिताओंकी सन्तान थे। गिरमिटिया भारतीय वे थे, जो एक अनुबन्धके अन्तर्गत नेटालके गन्ने के खेतोंमें कमसे-कम पाँच वर्षतक काम करने के लिए गये थे। इस अनुबन्धको अवधिको समाप्तिसे पहले तोड़ा नहीं जा सकता था। इस अनुबन्धको गिरमिट भी कहा जाता था, इसलिए वे गिरमिटिया भारतीय कहलाते थे। स्वर्गीय सर विलियम हंटरने[३] उनकी स्थितिको लगभग गुलामीकी स्थिति कहा था। मैंने इसका उल्लेख यह बतानेके लिए किया है कि हमारे इन भाइयों और बहनोंको दक्षिण आफ्रिकामें क्या-क्या कठिनाइयाँ और निर्योग्यताएँ झेलनी पड़ती थीं और किस प्रकार उन्होंने उन कठिनाइयोंपर काबू पाया और उन कठिनाइयोंके बावजूद अपने जीवनको ऐसे सुन्दर ढंगसे गढ़ा कि आज वे बहुत अच्छे-अच्छे और प्रतिष्ठाजनक धन्धोंमें लगे हुए है। इनमें से कुछ लोगोंने तो इंग्लैंडमें शिष्टजनोचित आधुनिक शिक्षा भी प्राप्त की है। इनमें से कुछ स्टोर-कीपर हैं और कुछ इससे छोटे धन्धोंमें लगे हुए हैं। इन बहादुर

  1. गांधीजी ने एल॰ एम॰ इंस्टीट्यूटशनमें भारतीय ईसाइयों की संभामें "मानव भ्रातृत्व" (ब्रदरहुड ऑफ मैन) विषय पर भाषण दिया था। विधान परिषद्-सदस्य एस॰ सी॰ मुखर्जीने सभा की अध्यक्षता कि थी।
  2. देखिए खण्ड १३, पृष्ठ ६७।
  3. सर विलियम विल्सन हंटर (१८४०–१९००), भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसकी ब्रिटिश समिति के सदस्य।