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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हुए कठिन शब्दोंका कोष और विषयसूची भी है। रिपोर्ट स्वयं ४४ पृष्ठोंकी है। इसमें ९ प्रकरण है। उसमें श्री सी॰ एफ॰ एन्ड्रयूजकी लिखी प्रस्तावना भी है। वे जाँच-समितिके सहयोगी सदस्य थे, और इस जाँच-समितिके गठन और काममें मुख्य हाथ उन्हींका था। समितिके अध्यक्ष श्री कुलधर चेट्टी थे। श्री एन्ड्रयूज प्रस्तावनामें कार्यकर्त्ताओंकी प्रशंसा करते हुए कहते हैं :[१]

देखता हूँ, इसमें मुझसे असम जानेका भी अनुरोध किया गया है। मैं अपनी बंगालकी यात्राके समय असम न जा सका, क्योंकि क्रूर मृत्युने तभी देशबन्धु दासको हमसे छीन लिया। इसके लिए मुझे बड़ा अफसोस है। फिर भी, मैंने श्री फूकनसे वादा कर रखा है कि यदि सब ठीक रहा तो अगले वर्ष में भारतके उस सुन्दर उद्यानको देखने अवश्य आऊँगा। मेरी शत तो सभी जानते हैं। देशबन्धुका सिद्धान्त था, मनुष्य, गोला-बारूद और पैसा। यद्यपि आज वे सशरीर हमारे बीच नहीं हैं, फिर भी इस सिद्धान्तको तो कायम रखना ही है। हमारा गोला-बारूद हाथ-कते सूतकी गोलियाँ ही हैं। ये गोलियाँ किसीको हानि नहीं पहुँचातीं, किन्तु ये रक्षा करनेकी असीम शक्तिसे युक्त है। यदि श्री फूकन और उनके साथी अपने शानदार उदाहरणके बलपर असम-निवासियोंको आलस्य त्याग करके चरखेको अपनाने के लिए प्रेरित करेंगे तो मैं उनकी अफीमकी बुरी आदतको दूर करने का भार अपने सिर ले लूँगा। उनका विश्वास है, और मेरा भी यही विश्वास है कि असममें खादीके प्रचारको बहुत सम्भावनाएँ हैं। ईश्वर करे वे सम्भावनाएँ शीघ्र ही चरितार्थ हों। फिर तो मैं हर शिक्षित असम-निवासीको विधानसभाके जालमें फंसने के लिए भी माफ कर दूँगा।

गोरक्षापर निबन्ध

पाठकोंको यह जानकर बड़ी खुशी होगी कि आचार्य ध्रुव और श्रीयुत सी॰ वी॰ वैद्य, दोनोंने गोरक्षापर लिखे पुरस्कार-निबन्धोंका परीक्षक बनना स्वीकार कर लिया है। मुझे आशा है कि अब जो निबन्ध आयेंगे वे इन सुयोग्य विद्वानोंके और चुने गये विषयके गौरवके अनुकूल होंगे। आचार्य ध्रुवका सुझाव है कि मुझे इस बातको स्पष्ट कर देना चाहिए कि निबन्ध लिखनेवाले विद्वान् इस सन्दर्भ में शास्त्रोंका

 
  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है। कार्यकर्त्ताओंकी उद्यमशीलता और त्यागकी प्रसंशा करनेके बाद इसमें बताया गया था कि जाँचके लिए सबसे पहले असमको ही चुना गया कि भारत-भरमें यहीं प्रान्त अफीमका सबसे अधिक शिकार रहा है। राष्ट्र-संघकी जाँचके अनुसार औषधके रूपमें जहाँ १०,००० व्यक्तियोंपर केवल छः सेर अफीम होनी चाहिए, वहाँ असममें यह परिमाण कमसे-कम ४५ सेर और अधिक से अधिक २३७ सेर आता था। इसके बाद असहयोग आंदोलनके समय इस परिमाणमें जो भारी कमी आ गई थी, उसका उल्लेख करते हुए समितिकी सिफारिशें सूचित की गई थीं, इस प्रसंगमें सरकारी सहायता भी आवश्यक मानी गई थी, लेकिन साथ ही यह भी कहा गया था कि सबसे जरूरी तो यह है कि इसके पक्षमें लोकमत तैयार किया जाये। इसके लिए असमके कल्याणकी इच्छा रखनेवाले लोगोंसे अफीम विरोधी समितियाँ गठित करनेकी अपिल की गई थी। अंतमें गांधीजीसे यह अनुरोध किया गया था कि वे एक बार फिर असममें आकर अपने नेतृत्वमें ऐसे अफीम-विरोधी आन्दोलनका सूत्रपात करें, जो पूरी तरह शांतिपूर्ण तरीकों चलाया जा सकें।