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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह किसे मालूम है कि उत्तर देते हुए कुछ मोह न रहा होगा? यदि इसमें कुछ मोह रहा हो तो भी जिस प्रकार थोड़े बहुत पुण्यकर्म रामके चरणोंपर रख दिये जाते हैं, उसी प्रकार यह मोह भी उसीको समर्पित है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १५–११–१९२५
 

२४२. टिप्पणियाँ
रेलकी यात्रा

एक समय था जब रेलके यात्रियोंकी तकलीफोंका में स्वयं अनुभव किया करता था और उस समय वे मुझे चुभती भी थीं। अब, वे दिन तो मेरे लिए चले गये। अब मैं तीसरे दर्जेंकी यात्रा नहीं करता इसलिये मुझे रेल यात्रियोंके कष्टोंका व्यक्तिगत अनुभव कम ही मिलता है। और जिस वस्तुका निरन्तर अनुभव नहीं होता उसका ध्यान भी भला कैसे रह सकता है? इसके सिवा अन्य कार्य जिन्हें मन अधिक महत्त्वपूर्ण मानता है, मेरा सारा समय ले लेते हैं। इसलिए यात्रियोंकी असुविधाओंके बारे में जाँच करने और लिखनेकी बात सूझती ही नहीं। लेकिन मेरी कच्छकी यात्रामें श्री जीवराज नेणशीने मुझे, यात्रियोंके दुःखोंका स्मरण करने के लिए सालमें जो एक दिन तय किया गया है, उसकी याद दिलाई और कुछ लिखनेके लिए कहा। ऐसा एक दिन रखना, उस दिन रेल-यात्रियोंके कष्टोंका स्मरण करना, उन्हें दूर करनेके लिए उपाय खोजना तथा पिछले साल इस दिशामें जो उपाय किये गये हों उनका लेखा-जोखा करके नये उपायोंकी खोज करना-यह सब तो उचित ही है। परन्तु जैसे हर वस्तुके दो पहलू होते हैं, इस प्रश्नके बारेमें भी वैसा ही है। यात्रियोंको जो दुःख भोगना पड़ता है उसमें केवल सत्ताधारियोंका ही दोष होता है, यह बात नहीं। यात्रियोंका भी उसमें बड़ा हिस्सा होता है, इसका मुझे अनुभव है। यात्री जहाँ शिकायत ही नहीं करते अथवा यह भी नहीं जानते कि उनके भी कुछ अधिकार है वहाँ रेलवेके अधिकारी क्या कर सकते हैं? अथवा जहाँ यात्री स्वयं ही अपराध करने में पूरापूरा भाग लेते हों वहाँ भी रेलवेके अधिकारियोंको क्यों दोष दिया जाये? इसलिए मैं यह अपेक्षा करता हूँ कि जब ऐसे आयोजन हों तब उनमें थोड़ा-बहुत आत्मनिरीक्षण भी होना चाहिए। दूसरों के दोष भले ही निकालें परन्तु साथ ही साथ अपने दोषोंपर भी विचार करें। यदि हमारी कुछ बुरी आदतें दूर न होंगी तो रेलवेके नियम कितने ही अच्छे क्यों न हों अधिकारी कितने ही ईमानदार हों फिर भी यात्रियोंकी काफी दिक्कतें शेष रह जायेंगी। इसके अतिरिक्त यात्रियोंको कुछ कष्ट तो इसलिए होते हैं कि समस्त सरकारी पद्धति ही दूषित है। वे तो जबतक पद्धति ही न बदलें तबतक दूर नहीं हो सकते। उदाहरणके लिए रेलवेका मूल उद्देश्य यात्रियोंको सुविधा देना नहीं बल्कि हिन्दुस्तानसे धन खींचकर ले जाना और यदि कहीं विद्रोह आदि हो