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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कानके पास ले जाकर ऐसा दिखावा किया मानो उससे कुछ कह रही हो, लेकिन कहा कुछ नहीं और चली गई। जब वह लौटकर अपने मित्रके पास गया तो उससे मित्रने पूछा कि बताओ उस औरतने तुमसे क्या कहा। वह बोला कि उसने तो कुछ भी नहीं कहा। दूसरे मित्रके मनमें सन्देह पैदा होना स्वाभाविक था। खुद अपनी आँखोंसे सब-कुछ देखते हुए उसके बारेमें कुछ भी न मालूम हो सकनेके कारण उसका सन्देह बढ़ता गया। कुछ समय बीतनेपर उनको मित्रता टूट गई और उस औरतको इनाम मिल गया।"

ठीक इसी तरहसे, महात्माजी, आप कृपया तबतक हिन्दू-मुसलमानोंमें पूरी एकताकी आशा न कीजिए जबतक कि तीसरा पक्ष हर क्षण बराबर लोगोंको आपसमें लड़ाते रखने की कोशिश कर रहा है और सो भी न केवल देशके वरन् सारे ब्रिटिश साम्राज्यके सुलभ साधनों द्वारा कर रहा है, और यह जानते हुए कर रहा है कि उस पक्ष (सरकार) का अस्तित्व ही इस देशमें बसी कई जातियोंके पारस्परिक मनमुटाव और झगड़ेपर निर्भर है। आप स्वराज्य प्राप्तिके साधनके रूपमें हिन्दू-मुस्लिम एकताके लिए बहुत उत्सुक है, लेकिन अगर आप इसपर बार-बार विचार करें तो मेरा विश्वास है कि आप इसी नतीजेपर पहुँचेंगे कि सरकारको उलटने और स्वराज्यकी स्थापना करनेसे इस देशमें शान्ति कायम होगी और देशकी अनेक जातियोंमें एकता स्थापित होगी, न कि शान्ति और एकता द्वारा स्वराज्य मिलेगा। स्वराज्यसे पहले स्थायी एकता होना असम्भव है।

(३) इस देशमें स्वराज्यकी स्थापना होनेसे पहले अस्पृश्यता भी दूर नहीं की जा सकती है। कारण निम्नलिखित हैं :

देशकी भलाईके लिए किये जानेवाले हरएक कार्यका वर्त्तमान सरकार और उसके उकसानेपर उसके भारतीय मित्र भी विरोध करते है। अस्पृश्यता निवारण क्योंकि देशकी भलाईका काम है, इसीलिए सरकार उसमें रुकावट डालती रही है और डालती रहेगी। आप एक सुधारक है। आपके अनुयायियोंको त्रावणकोरवाइकोममें सरकारने बहुत तंग किया। अगर आप यह चाहें कि किसी हिन्दू मन्दिरमें अस्पृश्योंको कुछ हक और सुविधाएँ दी जायें तो वहाँके हिन्दू-समाजके कट्टर लोग इसका विरोध करेंगे, लेकिन क्या यह सच नहीं है कि यह सरकार अस्पृश्योंके खिलाफ उन कट्टर लोगोंकी मदद करने आ जाती है और आगे भी आयेगी? तब फिर जबतक आप इस सरकारको नहीं हटाते, इस मामले में आप कैसे सफल हो सकते है? अभी तो महात्माजी, इस देशमें विद्यमान हर बुराईके लिए केवल यह सरकार ही जिम्मेदार है। आपके इस अस्पृश्यता निवारण कार्यक्रममें अधिकांश भारतीय लोग आपका साथ दे रहे हैं, लेकिन सिर्फ इस सरकारकी वजहसे ही वह पूरा नहीं हो पाता है।

अपने त्रिसुत्री कार्यक्रमके सम्बन्धमें आप जो कुछ कहते हैं, उसमें बहुत सच्चाई है, लेकिन मैं सादर निवेदन करता हूँ कि मानवीय क्रिया-कलापोंके व्यावहारिक पक्षको बहुत हदतक आपने ध्यानमें नहीं रखा है। देश और आपके सिपाही हम सब लोग