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परिशिष्ट

लिखा था) और यह भी कि दुष्टताको बिना सोचे आँख मूँदकर संरक्षण देनेवाले लोगोंपर दया ही आनी चाहिए, उनसे घृणा नहीं करनी चाहिए। जो लोग इस बातको समझ गये है वे सारे मनुष्योंमें आपसी भाईचारेके नये रास्तेपर पहला कदम रख रहे हैं और यह रास्ता उन्हें अपने लक्ष्य, सत्यको विजय और सत्याग्रहतक ले जायेगा।

हमारा आपसे निवेदन है कि अपने जवाबमें आप हमें जिस ढंगसे हम उचित समझें उसी ढंगसे अपने देशके लिए संघर्ष करनेकी सलाह-भर नहीं देंगे, बल्कि हम यह भी जानना चाहेंगे कि आप क्या उचित समझते हैं और विशेष रूपसे यह कि आप उस पूर्ण अहिंसाको कैसे उचित बताते हैं जो हमारी समझमें दुष्टताके विरुद्ध सब तरहके सच्चे संघर्षका एक तरहसे त्याग कर देती है और इसीलिए जो स्वयं में बुरी है—इसी तरह जैसे कि हम उस पुलिसवालेको दुष्ट ही कहेंगे जो किसी अपराधीको बिना दण्ड पाये बच जाने देता है।

हमारा विश्वास है कि सबसे पहले तो हमें अपने धर्मका अनुसरण करना चाहिए और इससे भी पूर्व हमें वैसा जीवन जीना चाहिए जो ईश्वरने हमारे लिये गढ़ा है, लेकिन हमें इस अधिकार और कर्त्तव्यका भार भी सौंपा गया है कि हम अपने साथियोंके जीवन में जब वे हमसे वैसा करनेको कहें, हस्तक्षेप करें, या तब जब हमें उस हस्तक्षेपमें समस्त विश्वके लिए होनेवाली किसी बुराईसे संघर्ष करनेका उपाय दिखाई दे। हमारा मत है कि अन्यथा हस्तक्षेप करना उचित नहीं है, क्योंकि केवल ईश्वर ही मनुष्योंके हृदयकी सारी बात समझ सकता है और यह फैसला कर सकता है कि मनुष्योंके लिए क्या सही रास्ता है। और हमारा विचार है कि इससे बड़ा कोई धर्मको मर्यादा भंग करनेवाला कार्य नहीं हो सकता कि ईश्वरका स्थान हथिया लिया जाये; और इस धर्म मर्यादा-भंगका दोषी हम अंग्रेजोंको मानते है क्योंकि समस्त विश्व में सर्वत्र लोगोंके जीवनमें हस्तक्षेप करना उनका मिशन मालूम देता है।

इसी कारणसे हमें यह समझमें नहीं आता किं आप विवाहित लोगोंको पारस्परिक समझौतेके बिना एक-दूसरेके वर्जनकी सिफारिश कैसे करते हैं, क्योंकि विवाह द्वारा दिये गये अधिकारोंमें ऐसा हस्तक्षेप मनुष्यको अपराधको दिशामें ले जा सकता है। ऐसे मामलोंमें तो आपको तलाककी सलाह देनी चाहिए थी।

कृपया हमारे इन प्रश्नोंका उत्तर दीजिए। आपने जीवनकी जो रूपरेखा हमें दी है, उसे पाकर हम इतने प्रसन्न है कि हमें आपके उस स्तरके योग्य जीवन जीनेका सही रास्ता खूब अच्छी तरह समझनेकी बड़ी ख्वाहिश है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ८–१०–१९२५
 

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