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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


हमारे देशमें एकरूपता लानेकी यह चिन्तनीय प्रक्रिया दीर्घकालसे चली आ रही है। प्रत्येक जातिके प्रत्येक व्यक्तिके लिए उसके द्वारा करणीय कर्म निर्धारित कर दिया गया है और उसको इस विचारके प्रति भी सम्मोहित कर दिया गया है कि वह चूंकि किसी दैवी आदेशसे बँधा हुआ है जिसे उसके पूर्व पुरुषोंने स्वीकार किया था, उस आदेशसे मुक्ति पाने का प्रयास उसके लिए पापपूर्ण होगा। चींटी-जीवनकी इस सामाजिक व्यवस्थाके अनुकरणसे छोटे-मोटे दैनन्दिन कर्त्तव्योंका पालन तो उसके लिए आसान हो जाता है परन्तु मनुष्यत्वकी स्थिति पा सकना विशेष-रूपसे कठिन हो जाता है। इससे दासवृत्ति वाले व्यक्तिके, जिसके लिए श्रम एक बोझ है, हाथपाँव तो कुशलतासे चलते है, लेकिन जो व्यक्ति कृती है और जिसका कार्य सृजन है, उसका मन भर जाता है। इस प्रकार भारतमें युगोंसे हमें केवल उसीकी आवृत्ति मिलती है जो बीत चुका है।

जब हम लोग इस सिद्धान्तको अपनी संस्थामें कार्यान्वित करनेके उपायोंपर विचार कर रहे थे तभी मुझे आयरलैंडके आदर्शवादी लेखक ए॰ ई॰ द्वारा लिखित पुस्तक 'द नेशनल बीइंग' (राष्ट्रीय व्यक्तित्व) देखनेको मिली। इस लेखककी कृतिमें काव्य और व्यावहारिक ज्ञानका ऐसा समन्वय है जो कम ही देखनेको मिलता है। उस पुस्तकमें मुझे सहकारी जीवनका महान् और वास्तविक चित्र देखनेको मिला, जिसका मैं स्वप्न देखा करता था। मेरे सामने यह बात बिलकुल साफ हो गई कि ऐसे जीवनके क्या विविध परिणाम निकल सकते हैं और मानव-जीवन कितना पूर्ण हो सकता है। मैं समझ सका कि पृथक्ता ही दासता है और एकता ही मुक्ति है, इस ठोस सत्यका जीवनके किसी भी स्तरपर कितना महत्त्व हैं। उपनिषदमें कहा गया है कि ब्रह्म विवेक है, ब्रह्म आत्मा है, परन्तु अन्न भी ब्रह्म है जिसका आशय यह है कि अन्न भी अनन्त सत्यका प्रतीक है और इसीलिए यदि हम सही मार्गपर अग्रसर हों तो उसके द्वारा भी हम एक महान् सत्यका साक्षात्कार कर सकते हैं।

सिद्धान्त या पद्धतिके किसी मामले में महात्मा गांधीसे मतभेद रखना मुझे बहुत ही अरुचिकर लगता है। यह बात नहीं कि किसी उच्चतर दृष्टिकोणसे यह कोई गलत बात है, लेकिन ऐसा करते हुए मेरा मन झिझकता है। कारण यह कि जिस व्यक्तिके प्रति मेरे मनमें इतना प्यार और आदर हो उससे किसी भी क्षेत्रमें सहयोग करनेसे बढ़कर और सुख क्या हो सकता है? महात्माजीके महान् नैतिक व्यक्तित्त्वसे अधिक अद्भुत मेरे लिए और क्या हो सकता है? उनके व्यक्तित्वमें हमें प्रभुने शक्तिका प्रोज्ज्वल तड़ित-प्रकाश दिया है। मेरी प्रार्थना है कि यह शक्ति भारतको अभिभूत न करके सामर्थ्य प्रदान करे। हमारे दृष्टिकोण और मनोवृत्तियोंमें अन्तरके कारण महात्माजीकी दृष्टिमें राममोहन रायका व्यक्तित्व सामान्य है जबकि मैं उनका आदर एक महान् व्यक्तित्वके रूपमें करता हूँ। इसी अन्तरके कारण में महात्माजीके कार्य-क्षेत्रको अपनी