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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्थापित किया है। एक वर्गके रूपमें भारतस्थित अंग्रेजोंकी धौंस जमानेकी प्रवृत्तिसे मुझे घृणा है। जिस प्रकार में अस्पृश्यताकी उस गर्हित प्रथासे, जिसमें आज करोड़ों हिन्दुओंका हाथ है, घृणा करता हूँ उसी प्रकार भारतके निर्मम शोषणसे भी मुझे तीव्र घृणा है। परन्तु जिस प्रकार मैं धौंस जमाने और अपनेको ऊँचा माननेवाले हिन्दुओंसे व्यक्तियोंके रूपमें घृणा नहीं करता उसी प्रकार जिन अंग्रेजोंमें यह बुराई है उनसे भी मैं घृणा नहीं करता। मैं हर तरहके प्रेमपूर्ण उपायोंसे ही उनका सुधार करना चाहता हूँ। मेरे असहयोगका मूल घृणामें नहीं, प्रेममें है। मेरे व्यक्तिगत धर्मका कड़ा आदेश है कि किसीसे घृणा मत करो। मैने बारह सालकी उम्रमें अपनी एक पाठ्यपुस्तकसे यह सरल परन्तु भव्य सिद्धान्त सीखा था। उसमें मेरा विश्वास आजतक बना हुआ है, बल्कि दिन-दिन और भी गहरा होता चला जा रहा है। मुझपर उसकी धुन सवार है। अतएव जिन अंग्रेजोंने इन भाइयोंकी तरह मुझे गलत समझा हो, उन सबको मैं यकीन दिलाना चाहता हूँ कि मैं कभी अंग्रेजोंसे घृणा करनेका पाप न करूंगा; भले ही मुझे १९२१ की तरह उनसे तीव्र संघर्ष में ही क्यों न उतरना पड़े। वह लड़ाई अहिंसात्मक, स्वच्छ और सत्यमय होगी।

मेरा प्रेम परिमित नहीं है। ऐसा नहीं हो सकता कि मैं अंग्रेजोंसे घृणा करूँ और हिन्दुओं या मुसलमानोंसे प्रेम करूँ। कारण यदि मैं हिन्दुओं और मुसलमानोंसे सिर्फ इसलिए प्रेम करूँ कि उनका रंग-ढंग मुझे अच्छा लगता है तो जिस क्षण बुरा लगने लगेगा—और किसी क्षण बुरा तो लग ही सकता है—उसी क्षण में उनसे घृणा करने लग जाऊँगा। जो प्रेम प्रेम-पात्रकी अच्छाईपर निर्भर करता है वह तो सौदेबाजीकी चीज हो गई। सच्चे प्रेममें स्वके सम्पूर्ण त्यागकी वृत्ति होती है और उसमें प्रेमी प्रेम-पात्रसे कोई अपेक्षा नहीं रखता। वह एक आदर्श हिन्दू पत्नी, जैसे कि सीता, के प्रेमकी तरह होता है। रामने सीताकी अग्नि-परीक्षा ली, फिर भी वे रामके साथ पूर्ववत् प्रेम करती रहीं। उन्होंने उस परीक्षाको सहर्ष स्वीकारा, क्योंकि वे जानती थीं कि वे क्या कर रही है। उनका आत्म-यज्ञ उनकी किसी दुर्बलतासे नहीं, बल्कि शक्तिसे उद्भूत था। प्रेम संसारकी सबसे बड़ी शक्ति है, और फिर भी जितनी विनय उसमें हैं, उससे अधिक विनयकी कल्पना नहीं की जा सकती।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ६–८–१९२५