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३३. कुछ ध्यान देने योग्य तथ्य

आशा है, पाठकगण अखिल भारतीय खादी मण्डलके मन्त्रीसे प्राप्त निम्नलिखित रिपोर्ट अत्यन्त दिलचस्पीसे पढ़ेंगे :[१]

इस रिपोर्टसे हमें यह तो पता चलता ही है कि इन ग्रामीणोंके बीच केवल सूत कातनेवालोंके द्वारा एक सालमें कितना काम किया जा सका है। लेकिन जो बात हमारा ध्यान इससे भी अधिक खींचती है, वह है हाथ कताईसे होनेवाली आय और खेतीसे होनेवाली आयके आँकड़ोंकी तुलना। इन आँकड़ोंसे यह भ्रम सदाके लिए दूर हो जाता है कि पेशेवर कातनेवालोंको भी कताईके धन्धेसे बहुत कम कमाई हो सकती है। आँकड़ोंसे पता चलता है कि जिसने चरखेसे सबसे कम कमाई की है, उसके मामले में भी चरखेसे होनेवाली आय दूसरी आयकी १४ प्रतिशत है। किन्तु इक्केदुक्के परिवारोंमें तो उसका प्रतिशत ६६ तक आया है। पाठक यह भी जरूर देखेंगे कि कताईके साथ-साथ स्वभावतः दूसरे सुधार कैसे होने लगते हैं। यहाँ दिये हुए विवरणमें शराबबन्दीके कामका भी उल्लेख है। मैंने बंगालमें कई जगह देखा है कि जो लोग गाँवोंके लोगोंमें कताईका प्रचार करनेमें दिलचस्पी रखते हैं, उन्होंने सहज ही डाक्टरी सहायताका काम भी हाथमें ले लिया है। यदि वे ग्रामीण जीवनके दूसरे जरूरी क्षेत्रोंमें कोई काम शुरू नहीं करते तो इसका कारण यह नहीं है कि वे वैसा करना नहीं चाहते, बल्कि यह है कि, इसके लिए उनके पास पर्याप्त कार्यकर्ता नहीं हैं। और गाँवोंके लोग भी इतने गतानुगतिक है कि उनपर केवल कहने-भरसे कोई असर नहीं होता। तमिलनाडुके गाँवोंकी[२] जाँचके फलस्वरूप जैसी स्थिति मालूम हुई है वैसी ही स्थिति बंगालके बहुतसे गाँवोंकी है। मुझे जाँच करनेसे पता लगा है कि हजारों किसान ऐसे है जो सालमें प्रति मास ७ या ८ रुपयेसे ज्यादा नहीं कमा पाते। यदि परिवारके सदस्योंके सूत कातनेसे इस आयमें २ रुपयेकी वृद्धि हो जाती है तो क्या यह इन गरीब किसानोंके लिए कोई छोटा-मोटा सहारा नहीं है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १३–८–१९२५
 
  1. यहाँ नहीं दी जा रही है। इसमे मद्रासके सेलम जिला-स्थित कुछ गाँवोंमें कताई और खादी आदीकी प्रगतिका विवरण दिया गया था।
  2. वे गाँव थे : उप्पूपालयम, सेम्बमपालयम, चित्तलन्दुर, पुलियन पट्टी, पुदुपालयम।