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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

प्रयोग अंग्रेज लोगोंके छोटे-छोटे समाजोंने किसी कानूनके पसन्द न आनेपर समय- समयपर किया है। उन्होंने ऐसे कानूनके विरुद्ध विद्रोह करनेके बजाय कोई हलका कदम उठाकर उसका प्रतिरोध किया और उसके फलस्वरूप जो दण्ड दिया गया उसको भोगना पसन्द किया। कुछ वर्ष पूर्व जब ब्रिटिश संसदमें शिक्षा सम्बन्धी कानून स्वीकार किया गया तब नॉन-कनफॉमिस्ट नामक ईसाई दलने डॉ० क्लिफर्डके नेतृत्व में अनाक्रामक प्रतिरोधका मार्ग अपनाया था। इंग्लैंडकी स्त्रियोंने मताधिकार प्राप्त करनेके लिए जो भारी आन्दोलन चलाया था वह भी पैसिव रेजिस्टेन्स कहा जाता था। इन्हीं बातोंको ध्यान में रखकर श्री हॉस्केनने यह कहा था कि अनाक्रामक निष्क्रिय प्रतिरोध कमजोरोंका अथवा मताधिकारहीन लोगोंका शस्त्र है । डॉ० क्लिफडके दलको मताधिकार प्राप्त था, किन्तु लोकसभामें उसके सदस्योंकी संख्या कम थी, इसलिए वह अपने मतके बलसे शिक्षा सम्बन्धी उक्त कानूनको स्वीकृत होनेसे न रोक सका। वह अपने कार्यकी सिद्धिके लिए शस्त्रका प्रयोग नहीं कर सकता था ऐसी कोई बात नहीं थी। किन्तु वह इसके लिए शस्त्रका प्रयोग करता तो सफल नहीं हो सकता था। फिर जब चाहे तब अकस्मात विद्रोह करके अधिकार प्राप्त करनेकी विधि व्यवस्थित राज्यतन्त्रमें चल नहीं सकती। इसके अतिरिक्त डॉ० क्लिफर्डके दलके कुछ ईसाई सदस्य शस्त्रका प्रयोग सामान्यतः सम्भव होनेपर भी उसका विरोध करते थे, और जिन स्त्रियोंने आन्दोलन किया उनको अवश्य ही मताधिकर प्राप्त नहीं था। वे संख्या-बल और शरीर-बल दोनोंमें कमजोर थीं; अतः यह उदाहरण भी श्री हॉस्केनके तर्कका पोषक ही था। उनके आन्दोलनमें शस्त्रका प्रयोग वर्जित नहीं था। उनके एक पक्षने मकान जलाये और पुरुषोंपर हमला किया। उन्होंने कभी किसीकी हत्या करनेका विचार किया हो यह तो मुझे मालूम नहीं है, किन्तु अवसर आनेपर मारपीट करना और लोगोंको परेशान करना उनकी एक पद्धति अवश्य थी।

किन्तु हिन्दुस्तानियोंके आन्दोलनमें शस्त्रके लिए तो कहीं भी और किन्हीं भी परिस्थितियों में अवकाश नहीं था । पाठक ज्यों-ज्यों आगे बढ़ेंगे, त्यों-त्यों देखेंगे कि सत्याग्रहियोंने भारीसे-भारी संकट आनेपर भी शरीर-बलका प्रयोग नहीं किया और ऐसी अवस्थामें भी नहीं किया जब उनमें सफलतापूर्वक उसका प्रयोग करनेका सामर्थ्य था। फिर हिन्दुस्तानी कौमको मताधिकार प्राप्त नहीं था और वह दुर्बल थी, ये दोनों बातें सच होनेपर भी आन्दोलनकी योजनासे इन बातोंका कोई सम्बन्ध नहीं था । मेरे इस कथनका आशय यह नहीं है कि यदि हिन्दुस्तानियोंको मताधिकार प्राप्त होता अथवा उनको शस्त्रबल प्राप्त होता तो भी वे सत्याग्रह करते। मताधिकारका बल प्राप्त हो तो प्रायः सत्याग्रहके लिए अवकाश नहीं होता। यदि शस्त्रबल प्राप्त हो तो विरोधी पक्ष अवश्य ही सचेत होकर चलता है। अतएव यह बात भी समझमें आती है कि शस्त्र-बलधारीके लिए सत्याग्रह करनेका अवसर ही कठिनाईसे आ सकता है। मेरे उक्त कथनका तात्पर्य इतना ही है कि हिन्दुस्तानियोंके आन्दोलनकी कल्पनामें शस्त्रबलकी शक्यता अथवा अशक्यताकी बात मेरे मनमें उठी ही नहीं थी; यह मैं निश्चयपूर्वक कह सकता हूँ। सत्याग्रह केवल आत्माका बल है, इसलिए जहां और जितने अंशमें

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