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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

शस्त्रबल अर्थात् शरीरबल अथवा पशुबलका प्रयोग हो सकता हो अथवा उसकी कल्पना की जा सकती हो, वहाँ और उतने अंशमें आत्मबलका प्रयोग कम हो जाता है। मेरे मतसे ये दोनों परस्पर विरोधी शक्तियाँ हैं और यह विचार आन्दोलनके जन्म-कालमें ही मेरे हृदय में पूरी तरह पैठ गया था ।

किन्तु यहाँ यह विचार उचित है अथवा अनुचित इसका निर्णय नहीं करना है, हमें तो केवल अनाक्रामक प्रतिरोध और सत्याग्रहका अन्तर ही समझना है। हम देख चुके हैं कि मूलत: इन दोनों शक्तियोंमें बहुत बड़ा अन्तर है। इसलिए जो मनुष्य इस अन्तरको समझे बिना अपनेको पैसिव रेजिस्टर (अनाक्रामक प्रतिरोधी) अथवा सत्याग्रही मानता है और दोनोंको एक ही वस्तु समझता है, वह दोनोंके प्रति अन्याय करता है और इससे परिणामतः हानि ही होगी। हम स्वयं भी दक्षिण आफ्रिकामें पैसिव रेजिस्टेन्स (अनाक्रामक प्रतिरोध) शब्दोंका प्रयोग करते थे। इससे लोग हमें भता- धिकारके लिए संघर्ष करनेवाली स्त्रियोंकी भाँति निर्भीक और त्यागी होनेका गौरव तो कम ही देते थे; अलबत्ता वे प्रायः हमें उन स्त्रियोंकी तरह जान और मालका नुक- सान करनेवाला समझते थे। श्री हॉस्केन-जैसे उदार और शुद्ध हृदयके मित्रने भी हमें दुर्बल मान लिया था। विचारमें ऐसी शक्ति होती है कि मनुष्य अपने-आपको जैसा मानता है अन्तमें वैसा ही हो जाता है। यदि हम यह मानते रहें और दूसरोंसे भी कहते रहें कि हम निर्बल हैं और इस कारण विवश होकर अनाक्रामक प्रतिरोधका प्रयोग करते हैं तो हम अनाक्रामक प्रतिरोध करते हुए कभी शक्तिमान नहीं हो सकते और अगर किसी प्रकार शक्तिसम्पन्न हो गये तो अवसर मिलते ही निर्बलोंके इस शस्त्रको छोड़ बैठेंगे। इसके विपरीत यदि हम सत्याग्रही बनते हैं और अपने आपको सबल समझकर इस शक्तिका प्रयोग करते हैं तो उसके स्पष्ट दो परिणाम होते हैं। हम शक्तिके विचारका पोषण करते हुए दिन-प्रतिदिन शक्तिमान बनते जाते हैं और ज्यों-ज्यों हमारी शक्ति बढ़ती जाती है त्यों-त्यों सत्याग्रहका तेज बढ़ता जाता है और हम कभी इस शक्तिको त्यागनेका प्रसंग तो खोजेंगे ही नहीं। फिर अनाक्रामक प्रतिरोधमें प्रेम- भावके लिए अवकाश नहीं होता, जबकि सत्याग्रहमें वैरभावके लिए कोई अवकाश नहीं होता, इतना ही नहीं बल्कि उसमें वैर-भाव अधर्म होता है। अनाक्रामक प्रतिरोध- में अवसर मिले तो शस्त्र बलका प्रयोग किया जा सकता है; सत्याग्रहमें शस्त्रके प्रयोगका चाहे जितना अनुकूल अवसर प्राप्त हो जाये तो भी उसका प्रयोग त्याज्य ही है। अनाक्रामक प्रतिरोध प्रायः शस्त्रबलकी तैयारीकी दिशामें एक कदम माना जाता है। सत्याग्रहका प्रयोग इस ढंगसे नहीं किया जा सकता। अनाक्रामक प्रतिरोध शस्त्र बलके साथ-साथ चल सकता है। सत्याग्रह और शस्त्रबल परस्पर विरोधी और विसंगत हैं, इस कारण दोनों साथ-साथ कदापि नहीं निभ सकते । सत्याग्रहका प्रयोग अपने प्रियजनोंके विरुद्ध भी किया जा सकता है और किया जाता है। अनाक्रामक प्रतिरोध- का प्रयोग असलमें प्रियजनोंके विरुद्ध किया ही नहीं जा सकता अर्थात् प्रियजनोंको अपना वैरी मानें तभी उनके विरुद्ध अनाक्रामक प्रतिरोधका प्रयोग किया जा सकता है । अनाक्रामक प्रतिरोधमें विरोधी पक्षको कष्ट देने और सतानेकी कल्पना सदा मौजूद

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