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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

रहती है और विरोधी पक्षको कष्ट देते हुए स्वयं जो कष्ट सहना पड़ता है उसको सहनेकी तैयारी होती है। इसके विपरीत सत्याग्रहमें विरोधीको कष्ट देनेका विचार भी नहीं आना चाहिए। उसमें तो स्वयं कष्ट सहकर ही विरोधीको वशमें करनेका विचार किया जाना चाहिए ।

इन दोनों शक्तियोंका मुख्य अन्तर यही है । मैंने अनाक्रामक प्रतिरोधके गुण-दोष भी सूचित कर दिये हैं। मेरे कहनेका यह मतलब नहीं है कि वे सभी गुण-दोष हर अनाक्रामक प्रतिरोध आन्दोलनमें दिखाई देते हैं; इसका इतना अर्थ अवश्य है कि ये दोष अनाक्रामक प्रतिरोधके बहुतसे उदाहरणोंमें दिखाई देते हैं। मुझे पाठकोंको यह भी बता देना चाहिए कि बहुतसे ईसाई ईसाको अनाक्रामक प्रतिरोधका आदि नेता मानते हैं। किन्तु उस प्रसंग अनाक्रामक प्रतिरोधका अर्थ शुद्ध सत्याग्रह ही मानना चाहिए । इतिहासमें वैसे अनाक्रामक प्रतिरोधके उदाहरण अधिक दिखाई नहीं देते। टॉल्स्टॉयने रूसके दुखोबर लोगोंका जो उदाहरण दिया है, वह ऐसे ही अनाक्रामक प्रतिरोध अथवा सत्याग्रहका उदाहरण है। जब ईसाकी मृत्युके बाद हजारों ईसाइयोंने अत्याचार सहन किये तब अनाक्रामक प्रतिरोध शब्दोंका प्रयोग किया ही नहीं जाता था। इसलिए उन जैसे जितने शुद्ध उदाहरण मिलते हैं, मैं तो उनको सत्याग्रहके उदाहरणोंके रूपमें ही मानता हूँ । यदि हम इन्हें अनाक्रामक प्रतिरोधके उदाहरणोंके रूपमें मानें तो अनाक्रामक प्रतिरोध और सत्याग्रहमें कोई अन्तर नहीं रहता। इस प्रकरणका हेतु तो यह बताना था कि अंग्रेजी भाषामें सामान्यत: पैसिव रेजिस्टेंस (अनाक्रामक प्रतिरोध) शब्दोंका जैसा प्रयोग किया जाता है उससे सत्याग्रहकी कल्पना बिलकुल भिन्न है।

मैंने ऊपर जो चेतावनी अनाक्रामक प्रतिरोधके लक्षण बताते हुए दी है उसका हेतु यह है कि इस शक्तिका प्रयोग करनेवाले मनुष्यके प्रति किसी तरहका अन्याय न हो। उसी तरह सत्याग्रहके गुण बताते हुए यह कह देना जरूरी है कि जो लोग अपने आपको सत्याग्रही कहते हैं मैं उनकी ओरसे इन सब गुणोंका दावा नहीं करता । मैं जानता हूँ कि बहुतसे सत्याग्रही मेरे बताये हुए सत्याग्रहके गुणोंसे बिलकुल बेखवर हैं। बहुतसे यह मानते हैं कि सत्याग्रह निर्बलोंका शस्त्र है। मैंने बहुतोंके मुँहसे यह भी सुना है कि सत्याग्रहका हेतु शस्त्रबलकी तैयारी है। किन्तु मैं यह बात फिर कह देना चाहता हूँ कि सत्याग्रह करनेवाले लोगोंमें कैसे गुण-दोष देखनेमें आये, मैंने यह बात नहीं बताई है, बल्कि सत्याग्रहकी कल्पनामें क्या-क्या बातें निहित हैं और उसके अनुसार सत्याग्रहीको कैसा होना चाहिए, मैंने यही बतानेका प्रयत्न किया है ।

संक्षेपमें इस प्रकरणको लिखनेका हेतु यह है कि हिन्दुस्तानियोंने ट्रान्सवालमें जिस शक्तिका प्रयोग आरम्भ किया था उसका ठीक स्वरूप समझमें आ जाये, लोग 'पैसिव रेजिस्टेंस' (अनाक्रामक प्रतिरोध) नामकी वस्तुसे उसको अलग करके देख सकें, इसी उद्देश्यसे इस शक्तिके अर्थके बोधक एक शब्दकी खोज भी करनी पड़ी थी । इसका हेतु यह बताना भी है कि उस समय इसके अन्तर्गत किन बातोंका समावेश माना जाता था ।

१. सत्याग्रहकी विस्तृत विवेचनाके लिए देखिए खण्ड १०, पृष्ठ. ४६-५२।

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