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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अध्याय १४

इंग्लैंडको शिष्टमण्डल

ट्रान्सवालमें खूनी कानूनके विरुद्ध प्रार्थनापत्र आदिके जो-जो कदम उठाने जरूरी थे वे सब उठाये जा चुके थे। किन्तु फिर भी विधानसभाने धारा विधेयकमें से स्त्रियों से सम्बन्धित अंश निकालकर शेष विधेयक लगभग जैसा प्रकाशित किया गया था वैसा ही स्वीकृत कर दिया। उस समय तो भारतीय समाजमें उत्साह बहुत था और ऐक्य और मतैक्य भी बहुत था; इसलिए कोई निराश नहीं हुआ और हम लोग भी इसी निश्चयपर कायम रहे कि कानूनके मुताबिक जो कदम उठाये जा सकते हों, वे उठाये जायें। उस समय ट्रान्सवाल 'शाही उपनिवेश' अर्थात् ऐसा उपनिवेश था जिसके कानून और शासन आदिकी जिम्मेदार साम्राज्य सरकार थी। इसलिए शाही उपनिवेशकी विधानसभा जिस कानूनको मंजूर करे उसपर सम्राट्की सम्मति ली जाती है। यह केवल व्यवहार और सौजन्य निभानेके लिए ही नहीं होता बल्कि यदि सम्राट् अपने मन्त्रिमण्डलकी सलाह से किसी कानूनको ब्रिटिश विधानके सिद्धान्तके विरुद्ध समझे तो वह उसपर अपनी सम्मति देनेसे इनकार भी कर सकता है। इस प्रकारके अवसर बहुत बार आये हैं। इसके विपरीत जिन उपनिवेशोंको उत्तरदायी शासन दे दिया जाता है उनकी विधानसभाओंके बनाये हुए कानूनोंपर सम्राट्की सम्मति मुख्यतः केवल शिष्टाचारके रूपमें ही ली जाती है ।

लोगोंको यह बात समझायी जानी थी कि यदि इंग्लैंडको शिष्टमण्डल भेजा जाये तो कौमको अपनी जिम्मेदारीसे ज्यादा अच्छी तरह आगाह हो जाना चाहिए। यह समझानेकी जिम्मेदारी मुझपर ही थी, इसलिए मैंने अपनी संस्थाके सम्मुख तीन सुझाव रखे। इनमें एक सुझाव तो यह था कि यद्यपि हम पहले यहूदी नाट्यशाला एम्पायर थियेटरमें की गई सभामें प्रतिज्ञा' ले चुके हैं फिर भी हमें मुख्य-मुख्य हिन्दु- स्तानियों से व्यक्तिगत रूपसे फिर प्रतिज्ञा करानी चाहिए, जिससे यदि उन लोगोंमें इस समयतक किसी भी प्रकारकी शंका या निर्बलता आ गई हो तो उसका पता चल जाये । इस सुझावके समर्थनमें मैंने एक तर्क यह दिया था कि यदि शिष्टमण्डलके पीछे सत्याग्रहकी तैयारीका बल होगा तो वह निर्भय होकर इंग्लैंड जायेगा और वहां उपनिवेश-मन्त्री और भारत-मन्त्रीके सम्मुख कौमके निश्चयको निर्भय होकर रख भी सकेगा। मेरा दूसरा सुझाव यह था कि हमें शिष्टमण्डलके लिए खर्चेका पूरा इन्तजाम पहले ही कर लेना चाहिए। मैंने तीसरी बात यह कही कि शिष्टमण्डलमें कमसे-कम लोग जाने चाहिए। बहुत बार लोगोंका खयाल यह देखा जाता है कि यदि अधिक मनुष्य जायेंगे तो अधिक काम हो सकेगा। मैंने इसी खयालको ध्यान में रखकर यह सुझाव दिया था। इस सुझावके मूलमें एक व्यावहारिक दृष्टि यह थी कि लोगोंको यह समझ लेना ठीक होगा कि शिष्टमण्डलमें जाना किसी सम्मान आदिकी दृष्टि से

१. ११ सितम्बर १९०६ को; देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ४३०-३४। सभाकी कार्यवाहीके विवरणके लिए देखिए पृ४.४५१-५६ ।

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