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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

और विशेष मतके लोग ही थे। ऐसे अन्य बहुत से लोगोंने भी जो इस समितिमें नहीं थे, हमारे कार्यमें बड़ा सहयोग दिया। मुझे लगा कि यदि हम इन सभी लोगोंको इकट्ठा करके कार्यमें लगा सकें तो अधिक अच्छा फल निकल सकता है। मैंने इसी विचारसे एक स्थायी समिति बनानेका निश्चय किया और मेरा यह विचार सभी दलोंके लोगोंको रुचा ।

किसी भी संस्थाका कार्यभार मुख्यतः उसके मन्त्रीपर होता है । मन्त्री ऐसा होना चाहिए जो संस्थाके उद्देश्यमें पूरा-पूरा विश्वास ही न रखता हो बल्कि जो उस उद्देश्यकी सिद्धिके लिए अपना अधिकांश समय दे सकता हो और जिसमें कार्यक्षमता भी हो । श्री एल० डब्ल्यू० रिचमें ये समस्त गुण थे। वे दक्षिण अफ्रिकाके थे। वे वहाँ मेरे दफ्तरमें लिपिकका काम कर चुके थे और इन दिनों लन्दनमें बैरिस्टरी पढ़ रहे थे। वे चूँकि इंग्लैंडमें ही थे और इस कार्यको करना भी चाहते थे, इसलिए हम दक्षिण आफ्रिकी ब्रिटिश भारतीय समितिकी स्थापनाका' साहस कर सके ।

इंग्लैंडमें ही नहीं, बल्कि समस्त पश्चिममें एक प्रथा है जो मुझे तो असभ्यता- पूर्ण लगती है। वहाँ अच्छेसे अच्छे कार्यका शुभारम्भ किसी भोजमें किया जाता है । ब्रिटेनके प्रधानमन्त्री अपने वार्षिक कार्यक्रम और भविष्यके बारेमें अपने अनुमानकी घोषणा मेंशन हाउस नामक लन्दनके बड़े-बड़े व्यापारियोंके केन्द्रीय भवनमें भाषण देते हुए प्रतिवर्ष ९ नवम्बरको किया करते हैं और इसी कारण उसकी ओर दुनिया भरका ध्यान जाता है। उस समय लन्दनके मेयरकी ओरसे मन्त्रियोंको भोजका निमन्त्रण दिया जाता है। वहाँ भोजके बाद शराबकी बोतलें खोली जाती हैं और मेजबान और मेह- मानोंके स्वास्थ्यकी कामना करते हुए शराब पी जाती है। इस प्रकारके शुभ अथवा अशुभ (पाठक अपनी दृष्टिसे विशेषण स्वयं चुन लें) कृत्यके चलते हुए वहाँ भाषण भी दिये जाते हैं। इसके साथ ही साम्राज्यके मन्त्रियोंके स्वास्थ्यके निमित्त टोस्टका प्रस्ताव किया जाता है। तब इस प्रस्तावका उत्तर देते हुए प्रधानमन्त्री उक्त महत्त्वपूर्ण भाषण देते हैं। जब किसीको कोई खास सलाह करनी होती है तब इस सार्वजनिक व्यवहारकी तरह व्यक्तिगत व्यवहारमें भी जिससे सलाह करनी होती है उसको प्रथाके अनुसार भोजनके लिए निमंत्रित किया जाता है। यह सलाह कभी-कभी भोजनके बीचमें और कभी भोजनके बाद शुरू की जाती है। हमें भी एक बार नहीं, बल्कि कई बार इस प्रथाका पालन करना पड़ा। किन्तु पाठक इससे यह अर्थ न निकालें कि हममें से किसीने भी अखाद्य खाया अथवा अपेय पिया। इस प्रकार हमने इस प्रथाके अनुसार एक दिन मध्याह्नको भोजनके लिए अपने सब मुख्य सहायकोंको बुलाया। निमन्त्रित सज्जनोंकी संख्या लगभग १०० थी। इस भोजका उद्देश्य इन सहायकोंके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना, इनसे विदा लेना और साथ ही स्थायी समिति बनाना था। इस अवसर- पर भी प्रथाके अनुसार भोजनके पश्चात् भाषण दिये गये और समितिकी स्थापना की गई। इससे भी हमारे आन्दोलनके प्रचारमें अच्छी मदद मिली।

१. खण्ड ६, पृष्ठ १७५, १९६ और २४२-४४।

२. विदाई समारोहमें दिये गये गांधीजीके भाषणके लिए देखिए खण्ड ६, पृष्ठ २५९-६१ ।

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