पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 29.pdf/१२

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स्मट्स समझौतेका स्पष्ट भंग है। "दक्षिण अफ्रिकाके भारतीय", " दक्षिण आफ्रिकाका शिष्टमण्डल" और "दक्षिण आफ्रिकाकी समस्या" शीर्षक लेखों में गांधीजी ने रंग-भेदपर आधारित कानन बनाने की समस्या पर विस्तार से लिखा है। उक्त शीर्षकों में अन्तिम शीर्षक एक बहुत ही जोरदार और तर्कसम्मत लेख है और उसका स्वर एकदम आक्रोशहीन, संयत है। २८ जनवरी को इसी प्रश्न पर 'यंग इंडिया' में लिखते हुए गांधी जी ने कहा : “यह विधेयक जिस सिद्धान्त पर आधारित है वह स्वयं अन्यायमूलक है। . . . १९१४ से आज तक का इतिहास यही बताता है कि भारतीयों के अधिकारों पर एक के बाद एक आक्रमण करना बन्द नहीं हआ" (पष्ठ ४२३)। ४ फरवरी, १९२६ को उन्होंने लिखा : “इस कानून से स्मट्स-गांधी समझौते का सरासर भंग होता है" (पृष्ठ ४३२)।

गांधीजी ने अपने नवम्बर १९२५ में किये गये उपवास और उसके उद्देश्यों के विषय में समझाते हुए लिखा : “मैं सत्य का शोधक हूँ। मैं अपने प्रयोगों को सर्वोत्तम तयारी के साथ किये गये हिमालय आरोहण-अभियान से भी कहीं अधिक महत्त्व देता हूँ। और परिणाम? यदि मेरी शोध वैज्ञानिक है तो प्रयत्न और परिणाम इन दोनों की कोई तुलना करना निरर्थक ही है। इसलिए, मुझे अपने ही मार्ग पर चलने दीजिए। जिस दिन में अपने सूक्ष्म अन्तर्नाद को सुनना बन्द कर दूंगा, उसी दिन मेरी उपयोगिता समाप्त हो जायेगी। . . . . ईश्वर की इच्छा, वह जैसी कुछ मुझे प्रतीत होती है, के अनुसार ही काम कर सकना-भर मेरे हाथ में है। फल देना तो उसी के हाथ की बात है। छोटी या बड़ी कोई भी बात हो, उसके लिए स्वयं कष्ट उठाना ही सत्याग्रह की कुंजी है। . . . यदि मुझे भारत में छोटे और गरीब लोगों के दुःखों को अपना दुःख समझना है और यदि मुझमें शक्ति है तो मुझे उन बच्चों की भूलों को अपनी भूल समझना चाहिए, जिन बच्चों की देख-रेख का भार मुझ पर है। यह काम पूर्ण नम्रता के साथ करने से ही में ईश्वर का --सत्य का-- साक्षात्कार कर सकूँगा" (पृष्ठ २७२-७४)।

'आसक्ति या आत्मत्याग' शीर्षक में उन्होंने जनता से अपने एकरूप होनेका वर्णन किया है और कहा है : “मेरे और जनता के बीच एक ऐसा सम्बन्ध है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता, लेकिन जिसे वह और मैं दोनों ही महसूस करते हैं। मुझे जनता के बीच रहने में अपने जनार्दन के दर्शन होते हैं। जनता-जनार्दन के बीच रहने से ही मुझे अपना समस्त सन्तोष, आशा और शक्ति मिलती है। यदि पूरे ३० वर्ष पहले मैंने यह बन्धन दक्षिण आफ्रिका में महसुस न किया होता तो मेरे लिए जिन्दगी भार-रूप हो जाती। लेकिन में यह जानता हूँ कि चाहे में आश्रम में रहु, चाहे जनता के बीच, मैं काम उसके लिए ही करता हूँ, उसके ही बारे में सोचता हूँ और उसके ही लिए प्रार्थना करता हूँ। में जनता के लिए ही जीना चाहता हूँ और तभी मेरा जीना सार्थक है" (पृष्ठ ३६९)। कातना इस जीवन-सम्बन्धका एक प्रतीक था।" "मेरे लिए चरखा देश के सबसे गरीब लोगों के साथ समानता स्थापित करने का प्रतीक है और उसपर प्रतिदिन सूत कातना उन गरीबों और अपने बीच के उस सम्बन्ध को नये सिरे से जोड़ना है। इस प्रकार समझने पर वह मेरे लिए सदैव सौन्दर्य और आनन्दकी वस्तु है। मैं बिना