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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

जाना कहीं भी बहुत और सन्तोषजनक माना जायेगा। सामूहिक सत्याग्रहकी लड़ाई किसी दूसरी तरह लड़ी ही नहीं जा सकती। जो लड़ाई अपनी ही शक्तिपर अवलम्बित हो और उसके लिए सार्वजनिक शिक्षण न दिया जाये तो वह आगे नहीं बढ़ सकती। इसलिए हम कार्यकर्ताओंको इतने लोगोंका उपस्थित हो जाना आश्चर्यजनक नहीं लगता था। हमने पहलेसे ही यह निश्चय कर लिया था कि अब सार्वजनिक सभा खुले मैदानमें ही की जानी चाहिए ताकि खर्च भी कुछ न हो और लोगोंको जगहकी तंगीके कारण लौटकर भी न जाना पड़े। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि इन सभी सभाओंमें प्रायः पूर्ण शान्ति रहती थी। उनमें उपस्थित सभी लोग सारी बातें ध्यानपूर्वक सुनते थे । यदि कुछ लोगोंको सभामें दूर खड़े होनेके कारण भाषण सुनाई नहीं देता था तो वे वक्तासे जोरसे बोलनेकी प्रार्थना करते थे । पाठकोंको यह बतानेकी जरूरत नहीं होनी चाहिए कि ऐसी सभाओंमें कुर्सियोंकी व्यवस्था तो की ही नहीं जा सकती थी। सब लोग जमीनपर ही बैठ जाते थे । केवल अध्यक्ष, भाषणकर्ता और दूसरे दो-चार लोगोंके बैठने लायक मंच बना लिया जाता था और उसपर एक छोटी मेज और दो-चार कुर्सियाँ या चौकियाँ रख ली जाती थीं।

प्रिटोरियाकी इस सभाके अध्यक्ष ब्रिटिश भारतीय संघके कार्यकारी प्रधान यूसुफ इस्माइल मियाँ थे। खूनी कानूनके अन्तर्गत परवान लेनेका समय निकट आ रहा था । इसलिए जैसे हिन्दुस्तानी बहुत उत्साहयुक्त होनेपर भी चिन्तित थे, वैसे ही अपनी सरकारके पास अजेय बल होनेपर भी जनरल बोथा और जनरल स्मट्स भी चिन्तित थे । एक पूरी जातिको बलपूर्वक झुकाना किसीको अच्छा नहीं लग सकता । इसलिए जनरल बोथाने श्री हॉस्केनको हम लोगोंको समझानेके लिए इस सभामें भेजा। श्री हॉस्केनका परिचय में सातवें प्रकरणमें दे चुका हूँ । सभामें उनका स्वागत किया गया। उन्होंने अपने भाषण में कहा, 'मैं आपका मित्र हूँ, यह तो आप जानते ही हैं। मेरी सहानुभूति आपके साथ है, यह भी कहनेकी आवश्यकता नहीं है। यदि मेरा वश चले तो मैं आपकी मांगको मंजूर करादूं। किन्तु यहाँके सामान्य गोरे इसका कितना विरोध करते हैं, मुझे आपको यह बताना अनावश्यक है। मैं आज आपके पास जनरल बोथाके कहनेसे आया हूँ। जनरल बोथाने मुझे कहा है कि मैं इस सभामें उपस्थित होकर आपको उनका सन्देश सुना दूं। उनके मनमें हिन्दुस्तानी कौमके प्रति आदरका भाव है। वे इस कौमकी भावनाओंको समझते हैं । किन्तु उनका कहना यह है कि हम लाचार हैं। ट्रान्सवालके सभी गोरे कानून बनानेका आग्रह किये हुए हैं। मैं स्वयं भी इस कानूनको जरूरी समझता हूँ । ट्रान्सवाल सरकारमें कितनी शक्ति है इस बातको हिन्दुस्तानी जानते हैं। साम्राज्य सरकारने इस कानूनको स्वीकार कर लिया है। हिन्दुस्तानी कौमने जितना हो सका उतना किया और अपनी प्रतिष्ठाकी रक्षा की। किन्तु जब कौमका विरोध सफल न हुआ और यह कानून मंजूर हो गया तब कौमको उस कानूनको मान लेना चाहिए और अपनी राजभक्ति और शान्तिप्रियता सिद्ध करनी चाहिए। यदि इस कानूनके अन्तर्गत

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