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दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह इतिहास

प्रिटोरिया की सभा में भाषण देनेवाले लोगोंमें यह नर-केसरी भी एक था। उन्होंने बहुत संक्षिप्त-सा भाषण दिया। उन्होंने कहा, 'इस खूनी कानूनसे हरएक हिन्दुस्तानी परिचित है । उसका अर्थ हम सब लोग समझ रहे हैं। श्री हॉस्केनका भाषण मैंने ध्यानपूर्वक सुना है। आपने भी उसे सुना। मेरे ऊपर तो उसका यही असर पड़ा कि मैं उससे अपनी प्रतिज्ञापर और भी दृढ़ हो गया हूँ । ट्रान्सवालकी सरकार कितनी शक्तिशाली है, यह हम जानते हैं । किन्तु इस खूनी कानूनसे बड़ा हमारे लिए और क्या खतरा हो सकता है ? वह हमें जेलमें डाल देगी, हमारा माल नीलाम कर देगी, हमें देश निकाला दे देगी, फाँसीपर लटका देगी। हम यह सभी सहन कर सकते हैं, किन्तु हम इस कानूनको सहन नहीं कर सकते।" मैं देख रहा था कि अहमद मुहम्मद काछ- लिया जब भाषण दे रहे थे तब वे बहुत उत्तेजित थे । उनका चेहरा लाल हो गया था । उनकी गलेकी और माथेकी रगें खूनकी तेजीसे उभर आई थीं। उनका शरीर काँप रहा था। उन्होंने अपने दाहिने हाथकी अँगुलियाँ फैलाकर अपने गलेपर फेरीं और गरजते हुए कहा, "मैं खुदाकी कसम खाकर कहता हूँ कि मुझे कत्ल भले ही कर दिया जाये, पर मैं इस कानूनको नहीं मानूंगा । और मैं यह चाहता हूँ कि यह सभा भी ऐसा ही निश्चय करे ।" वे यह कहकर बैठ गये। जब उन्होंने अपने गलेपर अँगुलियाँ फेरकर यह कहा था, तब मंचपर बैठे हुए कुछ लोगोंके चेहरोंपर प्रसन्नता दौड़ गई थी। मुझे याद है कि उन लोगों में में भी था। मुझे अपने मनमें शंका थी कि सेठ काछलियाने इन शब्दोंमें जितना जोर लगाया है उतना वे काममें भी लगा सकेंगे या नहीं। जब मुझे उस शंकाका ख्याल आता है तब और यहाँ उसका उल्लेख करते समय भी मुझे संकोच होता है । इस महान् लड़ाईमें जिन बहुतसे लोगोंने अपनी प्रतिज्ञाका अक्षरशः पालन किया उन सबमें सेठ काछलिया सदा अगुआ रहे। मैंने किसी भी दिन उनका रंग बदला हुआ नहीं देखा ।

सभामें उनके इस भाषणपर तालियोंकी भारी गड़गड़ाहट हुई। उस समयतक मैं उनसे जितना परिचित था उससे सभाके दूसरे लोग उन्हें अधिक जानते थे, क्योंकि उनमें से बहुतसे इस गुदड़ीके लालसे व्यक्तिगत रूपमें परिचित थे। वे जानते थे कि काछलिया जो करना चाहते हैं, वहीं कहते हैं और जो कुछ कहते हैं, वही करते हैं। सभामें दूसरे लोगोंने भी जोशीले भाषण दिये थे किन्तु मैंने सेठ काछलियाका भाषण इसलिए उद्धृत किया है कि यह भाषण उनके बादके कार्यकलापकी भविष्यवाणी सावित हुआ । जोशीले भाषण देनेवाले सभी लोग अपनी बातपर पक्के नहीं रह सके । इस नर-केसरीकी मृत्यु कौमकी सेवा करते हुए इस लड़ाईका अन्त हो जानेके चार वर्ष बाद १९१८ में हुई ।

इसका एक संस्मरण अन्यत्र कहीं नहीं दिया जा सकेगा, इसलिए में उसे भी यहीं दे देता हूँ । पाठक आगे चलकर टॉल्स्टॉय फार्मकी बात पढ़ेंगे। इस फार्ममें सत्याग्रहियोंके परिवार रहते थे । सेठ काछलियाने अपने लड़केको दूसरे लोगोंके सम्मुख उदाहरण रखने और सादा जीवनका अभ्यस्त बनाने और लोक-सेवक तैयार करनेके लिए विचारसे वहाँ शिक्षा लेनेके लिए भेजा था। हम कह सकते हैं कि उन्हींके कारण दूसरे मुसलमानोंने भी अपने बच्चोंको वहाँ भेजा। बालक काछलियाका नाम अली था । उस समय उसकी

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