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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आयु १० या १२ वर्षकी थी। अली नम्र, चंचल, सत्यवादी और सरल बालक था । खुदाके फरिश्ते उसको भी सेठ काछलियाकी मृत्युसे पहले और इस लड़ाईके बाद खुदाके दरबारमें बुला ले गये। मेरा विश्वास है कि यदि यह बालक जीवित रहता तो अपने पिताकी कीर्तिको अवश्य बढ़ाता ।

अध्याय १७

पहली फूट

१९०७ की पहली जुलाई आ गई और परवाना देनेके दफ्तर भी खुल गये । कोमका आदेश हुआ कि हरएक दफ्तरपर खुले आम धरना दिया जाये, अर्थात् दफ्त- रोंके रास्तोंपर स्वयंसेवक नियुक्त कर दिये जायें ताकि वे दफ्तरोंमें जानेवाले लोगोंको समझा-बुझाकर सावधान करें। हर स्वयंसेवकको लगानेके लिए एक विशिष्ट बिल्ला दिया गया और उसे यह बात खासतोरसे समझा दी गई कि परवाना लेनेवाले किसी भी हिन्दुस्तानीसे अशिष्ट व्यवहार न हो । स्वयंसेवक परवाना लेनेवालोंसे उनके नाम पूछें; किन्तु यदि वे न बतायें तो उनसे कोई जबर्दस्ती अथवा अशिष्ट व्यवहार न करें। वे एशियाई दफ्तर में जानेवाले हर हिन्दुस्तानीको कानूनसे हो सकनेवाली हानियोंकी छपी सूची दें और उसमें क्या लिखा है यह बात समझा दें । वे पुलिसके साथ भी शिष्टता ही बरतें। यदि पुलिस उन्हें गालियाँ दे अथवा उनसे मारपीट करे तो वे यह सब शान्तिके साथ सहन कर लें। यदि वे मार बर्दाश्त न कर पायें तो वहाँ से चले जायें। यदि पुलिस उन्हें गिरफ्तार करे तो वे खुशीसे गिरफ्तार हो जायें। यदि ऐसी घटना जोहानिसबर्गमें हो तो वे उसकी सूचना मुझे दे दें। दूसरे स्थानोंमें ऐसी सूचना वहाँ नियुक्त किये गये मन्त्रियोंको दें और वे जैसा निर्देश दें वैसा करें। स्वयंसेवकोंकी हरएक टुकड़ीका एक मुखिया भी निश्चित किया गया। स्वयंसेवकोंको उसके आदेशके अनुसार चलना था ।

भारतीय समाजके लिए इस प्रकारका यह पहला ही अनुभव था । १२ वर्षसे अधिक आयुके लोग धरने देनेवालोंमें अपना नाम लिखा सकते थे, इसलिए बारह वर्षसे अठारह वर्षतक के बहुत-से किशोरोंने धरनेदारोंकी सूची में नाम लिखाये । जिन्हें स्थानीय कार्यकर्त्ता नहीं जानते थे, ऐसे लोग धरनेदारोंमें नहीं लिये जाते थे । इस सावधानीके अतिरिक्त सभाओंमें घोषणा करके और अन्य प्रकारसे लोगोंको यह बता दिया गया था कि जो कोई हानिके भयसे अथवा अन्य कारणसे परवाना लेना चाहता हो, किन्तु धरनेदारोंसे डरता हो, उसे मुखियाकी ओरसे एक स्वयंसेवक दिया जायेगा और वह स्वयंसेवक उसको साथ ले जाकर एशियाई दफ्तरमें छोड़ देगा और उसका काम पूरा होनेपर उसे फिर धरनेदारोंकी हदसे बाहर पहुँचा आयेगा । कुछ लोगोंने इस सुरक्षा- व्यवस्थाका लाभ उठाया भी था ।

स्वयंसेवकोंने सभी स्थानोंमें बहुत उत्साहसे काम किया। वे अपने कार्यमें सदा तत्पर और जागरूक रहते थे । सामान्यतः यह कहा जा सकता है कि पुलिस

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