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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किन्तु स्वयंसेवक इतने जागरूक थे कि समाजको एक-एक क्षणकी गतिविधिका पता चलता रहता था। एशियाई दफ्तरमें भी कोई ऐसा अवश्य होगा जो सत्या- ग्रहियोंको इस तरहका समाचार दे देता था। फिर कुछ लोग ऐसे भी थे जो स्वयं कमजोर होनेपर भी यह सहन नहीं कर सकते थे कि उनके मुखिया कानूनके आगे झुक जायें। यदि मुखिया दृढ़ रहेंगे तो हम भी दृढ़ रह सकेंगे, वे इस शुद्ध भावसे सत्याग्रहियोंको सूचना दे देते थे। इस सावधानीके कारण एक बार यह समाचार मिला कि अमुक रातको अमुक दूकानमें अमुक-अमुक सज्जन परवाने लेंगे। इसलिए पहले तो समाजकी ओरसे ऐसा विचार करनेवाले लोगोंको समझाने-बुझानेका प्रयत्न किया गया और जब वे न समझे तो उस दूकानपर धरनेदार रख दिये गये। किन्तु मनुष्य कमजोरीमें पड़ जाये तो उसपर कबतक निगाह रखी जा सकती है? कुछ मुखियोंने काफी रात गये, १०-११ बजे परवाने ले लिये और एक स्वरमें बजती हुई बंशीके कुछ स्वर भंग हो गये। दूसरे दिन इन लोगोंके नाम समाजके आगे प्रकाशित कर दिये। किन्तु एक हृदके बाद व्यक्ति लोक-लाजसे परे हो जाता है। जब स्वार्थ ही प्रधान हो जाता है, तब लोक-लाज भी व्यक्तिको नहीं रोक पाती और वह विपथ- गामी हो जाता । इस पहली फूटके कारण धीरे-धीरे लगभग ५०० हिन्दुस्तानियोंने परवाने लिये। कुछ दिनतक तो निजी मकानोंमें परवाने लिये जाते रहे, किन्तु फिर लोक-लाजकी भावना कम होनेपर कुछ लोग खुल्लम-खुल्ला नाम लिखाने एशियाई दफ्तर भी जाने लगे।

अध्याय १८

पहला सत्याग्रही कैदी

जब एशियाई दफ्तरको अथक प्रयत्न करनेपर भी पाँच सौसे अधिक नाम लिखाने- वाले हिन्दुस्तानी नहीं मिले तब दफ्तरके अधिकारियोंने किसी प्रमुख व्यक्तिको गिर- फ्तार करनेका निर्णय किया। पाठक जमिस्टन कस्बेका नाम पढ़ चुके हैं। वहाँ बहुत-से हिन्दुस्तानी रहते थे। उनमें रामसुन्दर पण्डित नामका एक व्यक्ति था । वह ऊपरसे साहसी दिखता था और वाचाल था। उसे कुछ श्लोक मुखाग्र थे । वह उत्तर हिन्दुस्तान- का रहनेवाला था, इसलिए स्वभावतः उसे 'रामायण' के कुछ दोहे और चौपाइयाँ याद थी। फिर पण्डित कहे जानेसे लोगोंमें उसकी कुछ प्रतिष्ठा भी थी। उसने जगह- जगह भाषण दिये और वे भाषण बड़े जोशीले थे। वहाँके कुछ विघ्नप्रिय हिन्दुस्तानियोंने एशियाई दफ्तरको बताया कि यदि पण्डित रामसुन्दर गिरफ्तार कर लिया जाये तो जर्मिस्टनके बहुत-से हिन्दुस्तानी एशियाई दफ्तरमें आकर परवाने ले लेंगे। इस दफ्तरके अधिकारी इस लालचको नहीं रोक सके, इसलिए उन्होंने रामसुन्दर पण्डितको गिर- फ्तार कर लिया। चूँकि यह इस ढंगका पहला ही मामला था, इसलिए इससे सर- कारी क्षेत्रों और हिन्दुस्तानी समाजमें बहुत खलबली मची। जिस रामसुन्दर पण्डितको

१. विस्तृत विवरणके लिए देखिए खण्ड ७।

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