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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

केवल जर्मिस्टन ही जानता था वह क्षण-भरमें समस्त दक्षिण आफ्रिकामें प्रसिद्ध हो गया। जैसे किसी बड़े आदमीपर मुकदमा चले तो सबका ध्यान उसकी ओर खिंचता है, वैसे ही लोगोंका ध्यान रामसुन्दर पण्डितकी ओर खिंच गया। सरकारको शान्ति-रक्षा- की किसी प्रकारकी व्यवस्था करनेकी आवश्यकता नहीं थी। किन्तु उसने उसकी व्यवस्था की। अदालतमें भी रामसुन्दरका आदर इस खयालसे किया गया कि वह हिन्दुस्तानी कौमका प्रतिनिधि है, सामान्य अपराधी नहीं। अदालत उत्सुक हिन्दुस्तानियोंसे ठसाठस भर गई। रामसुन्दरको एक महीनेकी सादी कैदकी सजा दी गई। वह जोहानिस- बर्गकी जेलमें रखा गया और उसके लिए गोरे वार्डमें अलग कमरा दिया गया। लोगों- को उससे मुलाकात करनेमें तनिक भी कठिनाई नहीं होती थी। उसे बाहरसे खाना मँगानेकी इजाजत थी और कौमकी ओरसे उसके खाने-पीनेके लिए अच्छेसे-अच्छे व्यंजन भेजे जाते रहे। उसकी जो इच्छा होती वह पूरी की जाती । कीमने उसके जेल जानेका दिन बहुत धूमधाम से मनाया । निराशा किसीको नहीं हुई, बल्कि सबका उत्साह बढ़ा। सैकड़ों लोग जेल जानेके लिए तैयार हो गये। एशियाई दफ्तरने जो आशा की थी वह पूरी नहीं हुई। जर्मिस्टनके हिन्दुस्तानी भी परवाने लेनेके लिए नहीं आये। इस गिरफ्तारीका लाभ कीमको ही मिला। एक महीना पूरा होनेपर रामसुन्दर जेलसे छोड़ दिया गया। लोग उसे गाजे-बाजेसे जुलूस बनाकर सभास्थलमें ले गये । सभामें बहुत ही उत्साह-भरे भाषण दिये गये । रामसुन्दर फूल मालाओंसे ढंक दिया गया। स्वयंसेवकोंने उसके सम्मानमें भोज दिया और सैकड़ों हिन्दुस्तानियोंको यह लगा, 'हम भी जेल गये होते तो कैसा अच्छा होता' और उन्हें ऐसा मानकर उससे मधुर ईर्ष्या हुई।

किन्तु रामसुन्दर खोटा रुपया निकला। उसकी शक्ति झूठी सतीकी-सी थी । वह अकस्मात् गिरफ्तार किया गया था, इसलिए एक महीनेकी जेलसे बच निकलना तो उसके लिए सम्भव ही न था । उसे जेलमें जैसी अमीरी भोगनेको मिली वैसी उसने बाहर देखी भी न थी। फिर भी स्वतन्त्र घूमने-फिरने वाले व्यसनी मनुष्यको विविध व्यंजन मिलनेपर भी जेलका एकान्त और जेलका अनुशासन सह्य नहीं हो सकता । रामसुन्दर पण्डितके सम्बन्धमें भी ऐसा ही हुआ । कौमने और जेलके अधिकारियोंने उसकी पूरी खातिर खुशामद की, किन्तु फिर भी उसे जेलमें रहना कड़वा लगा। फलतः वह ट्रान्सवालको और इस आन्दोलनको सदाके लिए नमस्कार करके चला गया। सभी समाजोंमें चतुर खिलाड़ी होते हैं और ऐसे लोग आन्दोलनों में भी आ जाते हैं। ये लोग रामसुन्दरकी रग-रगको जानते थे; किन्तु उससे कीमकी कोई अर्थ-सिद्धि हो सकती है यह समझकर उन्होंने रामसुन्दर पण्डितका गुप्त इतिहास मुझसे छुपा कर रखा और मुझे उसका कुछ भी पता तबतक नहीं चलने दिया जबतक उसकी पोल नहीं खुल गई। मुझे बादमें मालूम हुआ कि रामसुन्दर गिरमिटिया था, उसने अपनी गिरमिटकी मियाद पूरी नहीं की थी और उससे पहले ही भाग आया । वह गिरमिटिया था मैंने यह बात उसके प्रति घृणा व्यक्त करनेके लिए नहीं कही। गिरमिटिया होना कोई बुराई नहीं। इस आन्दोलनकी प्रतिष्ठा तो


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