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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास समयपर वह कभी जोहानिसबर्गमें न पहुँच पाता तो मेरे पास शिकायतोंका ढेर लग जाता। अखबार प्रायः रविवारके सवेरे जोहानिसबर्ग पहुँचता था । मुझे मालूम है कि बहुतसे लोग अखबार आते ही पहला काम यह करते कि उसके गुजराती भागको आदिसे अन्ततक पढ़ जाते। कोई एक मनुष्य अखबार पढ़ता और दस-पाँच मनुष्य उसके इर्द-गिर्द बैठकर उसे सुनते। कुछ लोग गरीब होनेके कारण मिल-जुलकर भी अखबार खरीदते थे ।

छापेखानेमें फुटकर काम बन्द करनेकी बात मैं लिख चुका हूँ। जो कारण विज्ञापन बन्द करनेके थे, प्रायः वे ही कारण इस कामको बन्द करनेके भी थे। इसके बन्द करनेसे कम्पोजीटरोंका जो वक्त बचा उसका उपयोग छापेखानेसे पुस्तकें प्रका- शित करनेमें किया गया। जाति जानती थी कि हमारे इस कार्यका उद्देश्य भी धन कमाना नहीं है। फिर पुस्तकें भी लड़ाईमें सहायता देनेके लिए ही प्रकाशित की जाती थीं, इसलिए उनकी बिक्री भी पर्याप्त होने लगी। इस प्रकार अस और छापेखाने दोनोंका लड़ाईमें हिस्सा रहा । सत्याग्रहकी जड़ें जातिमें ज्यों-ज्यों गहरी होती गई त्यों-त्यों सत्याग्रहकी दृष्टिसे अखबार और छापेखानेकी नैतिक उन्नति होती गई, यह स्पष्ट रूपसे देखा जा सकता था।

अध्याय २०

पकड़-धकड़ 

रामसुन्दरकी गिरफ्तारीसे सरकारको कोई सहायता न मिल सकी, यह हम देख चुके हैं। बल्कि, अधिकारियोंने यह देखा कि जाति और उत्साहमें भरकर संगठित रूपसे आगे बढ़ने लगी है। एशियाई विभाग के अधिकारी 'इंडियन ओपिनियन' के लेखोंको तो ध्यानसे पढ़ते ही थे । लड़ाईके सम्बन्धमें कोई भी बात छुपाकर नहीं रखी जाती थी। जातिकी निर्बलता और सबलताको शत्रु, मित्र और उदासीन, जो भी चाहें अखबारको पढ़कर देख सकते थे। कार्यकर्त्ताओंने पहलेसे ही जान लिया था कि जिस लड़ाईमें कोई बुरा काम नहीं करना है, जिसमें धोखाधड़ी अथवा चालबाजीकी कोई भी गुंजाइश नहीं है और जिसमें बल होता तो ही जीत हो सकती है, उसमें छुपाने योग्य कोई बात हो ही नहीं सकती। जातिके स्वार्थका यह तकाजा था कि यदि निर्बलता रूपी रोगको निर्मूल करना हो तो उस निर्बलताकी परीक्षा करके उसे यथोचित् रूपसे प्रकट करना चाहिए। अखबार इसी नीतिके आधारपर चलाया जा रहा है, जब यह बात अधिकारियोंको मालूम हो गई तो उनके लिए अखबार जातिके वर्तमान इतिहासको जाननेके लिए दर्पण रूप बन गया और इसीलिए उन्होंने सोचा कि जबतक खास-खास नेताओंको न पकड़ा जायेगा तबतक इस लड़ाईका बल कदापि न टूटेगा |

१. विज्ञापन न देनेका निर्णय १९१२ में किया गया, लेकिन फुटकर काम उससे काफी समय पूर्व बन्द कर दिया गया था। देखिए खण्ड ११, पृष्ठ ३२२-२३ और ३२६ ।

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