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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इसलिए उन्होंने दिसम्बर १९०७ में कुछ नेताओंको अदालत में हाजिर होनेके नोटिस दिये। मुझे यह बात स्वीकार करनी चाहिए कि अधिकारियोंने इस तरहके नोटिस देकर सभ्यताका ही व्यवहार किया। वे चाहते तो नेताओंको वारंटोंके जरिए पकड़ सकते थे। उन्होंने ऐसा न करके उनको अदालतमें हाजिर होनेके नोटिस भेजे, इससे अधिकारियोंने सभ्यताका व्यवहार करने के साथ-साथ अपना यह विश्वास भी प्रकट किया था कि हिन्दुस्तानी नेता गिरफ्तार होनेके लिए तैयार हैं। नोटिसोंमें कहा गया था, 'कानूनके मुताबिक आप लोगोंको परवान लेने थे; किन्तु आपने वे नहीं लिये । आप अदालतमें आकर इस बातका जवाब दें कि आपको एक खास मुद्दतके भीतर ट्रान्सवाल- से निकल जानेका हुक्म क्यों न दिया जाये ?' इसके मुताबिक २८ दिसम्बर १९०७ को नेताओंको अदालतमें आना था और वे उस दिन अदालतमें हाजिर हो गये । '

इन नेताओंमें क्विन नामका जोहानिसबर्गमें रहनेवाला चीनियोंका नेता भी था । जोहानिसबर्गमें चीनियोंकी आबादी ३०० और ४०० के बीच होगी। वे सब या तो व्यापार करते हैं या छोटा-मोटा खेतीका काम । हिन्दुस्तान खेतीके लिए प्रसिद्ध है; किन्तु मेरी मान्यता है कि खेतीमें जितनी उन्नति चीनियोंने की है उतनी हमने नहीं की। इन दिनोंमें अमेरिका और अन्य पाश्चात्य देशोंने खेतीमें जो प्रगति की है, उसका वर्णन तो किया ही नहीं जा सकता, किन्तु पाश्चात्य कृषिको भी अभी प्रयोगकी अवस्थामें ही मानता हूँ । किन्तु चीन तो हमारे देशकी भाँति ही एक प्राचीन देश है और वहाँ प्राचीन कालसे खेतीका विकास किया गया है। इसलिए हम चीन और हिन्दुस्तानकी तुलना करके कुछ सीख सकते हैं। जोहानिसबर्गमें चीनियोंकी खेती देख- कर और उनसे बातचीत करके मुझे तो ऐसा लगा कि चीनियोंका खेतीका ज्ञान हमसे बढ़ा-चढ़ा है और वे हमारी अपेक्षा उद्योगी भी अधिक है। हम बंजर मानकर जिस जमीनका कोई उपयोग नहीं करते, चीनी लोग उसमें अच्छी फसलें उगा सकते हैं। वे अपने विभिन्न खेतोंका सूक्ष्म ज्ञान रखते हैं।


इस उद्योगी और चतुर जातिपर भी खूनी कानून लागू होता था। इसलिए उसने भी इस लड़ाईमें हिन्दुस्तानियोंका साथ देना उचित समझा था। फिर भी शुरूसे लेकर आखिरतक दोनों जातियोंका समस्त कामकाज बिलकुल अलग रहा। दोनों अपनी संस्थाओंकी मार्फत लड़ाई लड़ रही थीं। ऐसी नीतिका एक शुभ परिणाम यह होता है कि जबतक दोनों जातियाँ दृढ़ रहती हैं तबतक दोनोंको लाभ पहुँचता है, किन्तु जब एक हार जाता है तो दूसरीको उससे हानि पहुँचनेका कोई कारण नहीं होता और वह चाहे तो हार सकती ही नहीं। अन्तमें तो बहुतसे चीनियोंने हार मान ली थी, क्योंकि उनके नेताने उनको धोखा दिया था। उनका नेता कानूनके आगे तो नहीं झुका, किन्तु एक दिन मुझे किसीने बताया कि वह बिना हिसाब-किताब दिये भाग गया है। नेताके भाग जानेपर अनुयायियोंका टिकना सदा कठिन होता

१. जिन लोगोंपर मुकदमा चलाया गया था उनमें गांधीजीके साथ पी० के० नाघडू, सी० एम० पिल्ले, थम्बी नायडू, कड़वा और ईस्टन, क्विन तथा जॉन फोर्तोएन तीन चीनी भी थे। देखिए खण्ड ७, पृष्ठ ४५८-६४ तथा पृष्ठ ४७० ।

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