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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

है। फिर जब नेतामें कोई दोष दिखाई दे तब तो दोहरी निराशा उत्पन्न होती है। किन्तु जब पकड़-धकड़ शुरू हुई थी उस समय चीनी बहुत जोशमें थे। उनमें से शायद ही किसीने परवाना लिया हो। इसलिए हिन्दुस्तानी नेताओंकी तरह चीनियोंके कर्ता-धंर्त्ता श्री क्विन भी गिरफ्तार किये गये। कहा जा सकता है कि उन्होंने कुछ समयतक तो अच्छा काम किया।

गिरफ्तार हुए लोगों में से जिस दूसरे मुखियाका परिचय में इस स्थानपर देना चाहता हूँ वे हैं थम्बी नायडू । थम्बी नायडू तमिल थे। उनका जन्म मॉरिशसमें हुआ था। किन्तु उनके माता-पिता मॉरिशस मद्रास अहातेसे आजीविका कमानेके लिए आये थे। थम्बी नायडू सामान्य व्यापारी थे। उनकी स्कूली शिक्षा नहींके बराबर ही थी। किन्तु उनका अनुभवजन्य ज्ञान उच्च प्रकारका था । वे अंग्रेजी भली-भाँति बोल और लिख सकते थे, यद्यपि उसमें भाषा-विज्ञानकी दृष्टिसे दोष दिखते थे। उन्होंने तमिलका ज्ञान भी अनुभवसे ही प्राप्त किया था। ये हिन्दुस्तानी भी अच्छी तरह समझ और बोल लेते थे। उनका तेलुगुका ज्ञान भी पर्याप्त था, किन्तु वे नागरी और तेलुगु लिपियाँ नहीं जानते थे । थम्बी नायडूको मॉरिशसकी भाषा क्रीओलका, जो फ्रान्सीसी भाषाका अपभ्रंश मानी जाती है, ज्ञान भी बहुत अच्छा था। वे अकेले ही ऐसे दक्षिण भारतीय न थे जिन्हें इतनी भाषाओंका व्यावहारिक ज्ञान था । दक्षिण आफ्रिकामें ऐसे सैकड़ों हिन्दुस्तानी मिल सकते हैं जिन्हें इन सब भाषाओंका सामान्य ज्ञान हो । फिर इन सबके साथ-साथ उन्हें हब्शियोंकी भाषाका ज्ञान भी होता ही है। इन सब भाषाओंका ज्ञान उनको अनायास ही हो जाता है और हो सकता है। इसका कारण मुझे तो यही दिखाई दिया कि उनके मस्तिष्क परायी भाषाके माध्यमसे शिक्षा प्राप्त करके थके हुए नहीं होते। उनकी स्मरण शक्ति तीव्र होती है और वे इन भाषाओंको बोलने वालोंके साथ रहते-रहते इन भिन्न-भिन्न भाषाओंका ज्ञान प्राप्त करते हैं। उन्हें इसमें अधिक माथा-पच्ची नहीं करनी पड़ती। बल्कि इस प्रकारके सुगम मानसिक व्यायामसे उनकी बुद्धिका स्वाभाविक विकास हो जाता है। ऐसा ही बौद्धिक विकास थम्बी नायडू का भी हुआ था। उनकी बुद्धि बहुत तीव्र थी। वे नये-नये प्रश्नोंको बहुत शीघ्र समझ लेते थे। उनकी हाजिर जवाबी देखकर तो अचम्भा होता था । यद्यपि उन्होंने हिन्दुस्तान नहीं देखा था, फिर भी हिन्दुस्तानके प्रति उनका प्रेम अगाध था । देशभक्ति उनकी रग-रगमें व्याप्त थी। उनकी दृढ़ताका तो उनके चेहरेसे ही अनुमान हो जाता था। उनका शरीर सुदृढ़ और सुगठित था। वे श्रम करते हुए थकते ही नहीं थे। वे किसी सभाकी अध्यक्षताका निर्वाह उचित रूपसे कर सकते थे और इतने ही स्वाभाविक रूपसे भार-वाहकका काम भी । बोझा उठाकर आम रास्तोंपर चलनेमें उन्हें तनिक भी संकोच नहीं होता था। मेहनतकी आवश्यकता होनेपर तो वे रात- दिनका भेद करना जानते ही नहीं थे। जातिके निमित्त सर्वस्व होमनेमें वे किसीके भी साथ होड़ कर सकते थे। यदि थम्बी नायडू अति साहसी न होते और उनमें क्रोध न होता तो यह वीर पुरुष इस समय ट्रान्सवालमें काछलियाकी अनुपस्थितिमें जातिका नेतृत्व सहज ही सँभाल सकता था। जबतक ट्रान्सवालकी लड़ाई जारी रही

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